आत्मा की आवाज

 आत्मा की आवाज

रामस्वरूप रावतसरे
एक राजा ने एक सुन्दर सा महल बनाया और महल के मुख्य द्वार पर गणित का एक सूत्र लिखवाया। इसके बाद पूरे राज्य में घोषणा की कि मुख्य द्वार के गणित के इस सूत्र को हल करने से यह द्वार खुल जायेगा। जो इस सूत्र को हल कर द्वार खोल देगा राजा उसे अपना उतराधिकारी घोषित कर देगें।
राज्य के बड़े बड़े गणितज्ञ आये और सूत्र देख कर लौट गये, किसी को कुछ समझ नहीं आया। आखिरी तारीख आ चुकी थी उस दिन 3 लोग आये और कहने लगे हम इस सूत्र को हल कर देगें। उसमें 2 तो दूसरे राज्य के बड़े गणितज्ञ थे जो अपने साथ बहुत से पुराने गणित के सूत्रों की किताबों सहित आये थे। एक व्यक्ति जो साधक की तरह नजर आ रहा था। सीधा साधा कुछ भी साथ नहीं लाया था। उसने कहा मैं यहीं पास ही बैठकर ध्यान कर रहा हूं। अगर पहले ये दोनों महाशय कोशिश कर के द्वार खोल दें तो मुझे कोई परेशानी नहीं। पहले इन्हें मौका दिया जाय। वे दोनों गणीतज्ञ गहराई से सूत्र हल करने में लग गये लेकिन सूत्र हल नहीं कर पाये और हार मान ली। अंत में साधक को ध्यान से जगाया गया और कहा कि आप सूत्र हल करिये आप का समय शुरू हो चुका है।
साधक ने आंखें खोली और सहज मुस्कान के साथ द्वार की ओर चला, द्वार को धकेला और यह क्या द्वार खुल गया।
राजा ने साधक से पूछा ‘आप ने ऐसा क्या किया जो द्वार को इतना जल्दी खोल दिया।Ó साधक ने कहा, ‘जब मैं ध्यान में बैठा था तो सबसे पहले अन्तरात्मा से आवाज आई कि पहले चेक कर लें कि गणित के सूत्र तथा दरवाजे का कोई सम्बन्ध है भी या नहीं। इसके बाद इसे हल करने की सोचना और मैंने वही किया और दरवाजा खुल गया।
ऐसे ही हमारे साथ होता है हम भूत भविष्य में गोते लगाते रहते हैं। जिंदगी में समस्या होती ही नहीं और हम विचारों में सोच सोच कर उसे इतनी बड़ी बना लेते है कि यह समस्या कभी हल न होने वाली है लेकिन हर समस्या का उचित इलाज आत्मा की आवाज है। आत्मा भगवान का ही रूप है, वह एक दर्पण की तरह है जिसमें हम अपने बारे में सब कुछ देख सकते हैं लेकिन अपने आप पर अविश्वास और काल्पनिक चिन्ता के कारण हम वास्तविकता का चिन्तन ही नहीं कर पाते हैं। आत्मा रूपी दर्पण पर अविश्वास की धूल जमती जाती है जो कि सांसारिक उलझनों का मुख्य कारण है। हमें आज को ध्यान में रखकर अपने कर्म को करते रहना चाहिये। कल क्या होगा, कैसा होगा, वह हमारे कर्मों के तथा आज के सोच विचार के अनुसार होगा। आज की श्रेष्ठ सोच ही कल को अच्छा बना सकती है।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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