अपने पर विश्वास ही अनदेखे शत्रु कोरोना से विजय दिलाएगा

कमलेश लट्टा
प्रधान सम्पादक, मो. 89551 20679

ठहरा हुआ देश, शहर और गांव, सूनी सड़कें, धड़कते दिल, थरथराती सांस, वीरान आस्मां, सहमे ठिठके लोग और हवाओं में तैरते लाखों लाख सवालों के बीच में पिछले दिनों कृष्ण ने अपना जन्मदिन मनाया और देश ने भी अपनी स्वतंत्रता का जन्मदिन मनाया। कृष्ण की जिन्दगी को एक दर्शक की तरह देखें तो वे स्वतंत्रता की अजब कहानी थे। उन्होंने अपनी जिन्दगी बन्दिशों से ऊपर रखी। वो सब कुछ किया जो जिन्दगी में मनुष्यता के लिए आवश्यक था और इतना माना कि वो धर्म में परिवर्तित हो गया और वे ईश्वरीय रूप के स्वतंत्र पुरूष देव बने। वे राम का अपना अधूरा कार्य पूरा करने नए रूप में अवतरित हो बंधनों से मुक्त थे यानि वे स्वतंत्र थे जीने के लिए, मर्यादा को मानने के लिए और अभिव्यक्ति के लिए तभी तो उन्होंने युद्ध के घनघोर बरसते तीरों के बीच में अर्जुन को गीता का ज्ञान दिया था जो शाश्वत बन आज की हमारी जिन्दगी की डोर को धर्म से बांधे रखता है।
भारत भी जब स्वतंत्र हुआ तबसे अपने जन्मदिन से ही वो अपनी सरजमीं का खुद मालिक था। उसने अपनी सीमाएं तय की, अपना संविधान बनाया, अपनी मर्यादाएं तय की, नये तीर्थों का निर्माण किया, बेहद संवेदनशील तरीके से पंचवर्षीय योजनाओं के माध्यम से देश को दिन-ब-दिन उन्नत कराया गया। सेनाओं को गौरव प्रदान किया, किसान को हरित क्रान्ति के माध्यम से जमीन से जोड़ा और देश खुद भी उनसे जुड़ा। सामन्तवाद को खत्म करने का प्रयास करते हुए अखण्ड भारत का निर्माण किया और चार सीमाओं में भारत के अस्तित्व को अस्तित्व में लाया गया। उत्तर में हिमालय प्रहरी बना, पश्चिम में रेगिस्तान प्रहरी बना, दक्षिण में हिन्द महासागर प्रहरी बना और पूर्व में बंगाल की खाड़ी सजी-धजी प्रहरी बनी। हवाएं अपनी थीं, आसमान अपना था, नदियां अपनी थीं तो संस्कृति अनेकों रंगों के बाद भी भारत की अस्मिता का गौरवशाली अतीत था। इन सबने स्वतंत्र भारत को एक तेज प्रगतिशील शौर्य से भरा, दुनिया का सबसे बड़ा गणतंत्र बनाया।
आजादी के लिए लडऩे वाले देशभक्तों ने भारत की स्वतंत्रता की नींव रखी। वो नींव आज भी कभी-कभी ‘वन्दे मातरम्Ó उच्चारण के साथ देश की नींवो को थर्रा देती है। पुरानी जेलों की दीवारें आज भी भगतसिंह की हथकड़ी और बेडिय़ों की खनक को सुनती हैं और सिहर उठती हैं। वो फांसी का फन्दा जिस पर शहीदों ने अन्तिम सांस ली, आज भी जब हवा के झोंके से लहराता है तो तिरंगे को सलाम करता महसूस होता है।
काले पानी की जेलें आज भी काली दीवारों में कैद उन कैदियों को देख पा रही हैं जिनको सिर्फ इसलिए कैद किया गया था कि वे अंग्रेजी हुकूमत के आदेशों की पालना नहीं करते थे।
सनद रहे, करोड़ों कुर्बानियों का नतीजा है भारत की आजादी। हमारा फर्ज है हम अपनी आजादी का आज के सन्दर्भ में अपने-अपने प्रयासों से उसे गरिमा दें। भारत का अस्तित्व सदियों से परे है, सीमाओं से परे है। वृहद भारत की सार्वभौमिकता का विस्तार बेहद विस्तृत था। आज भी उन देशों में भारत के गौरव के सुनहरे खण्डहर और कहीं-कहीं जीवित जिजिविषा लिए प्रमाण विद्यमान है। हम हमारे देश की आजादी के इस पर्व को सैल्यूट करते हैं और वचन देते हैं कि, भारत के भाल पर फहराते तिरंगे को सदा सर्वदा स्वतंत्रता से फहराते रहने देने के लिए कुछ भी करेंगे। सीमाओं पर तैनात हमारे जाबांज सैनानियों को भी सैल्यूट देते हैं और आपकी शहादत को नमन करते हैं। हम तुम्हें नहीं भूलेंगे। अपनी ओज भरी सेना को भी कभी नहीं भूलेंगे। अपनी सोचों में, अपनी प्रार्थनाओं में अपनी बधाईयों में जिन्दगी के हर पल को सुरक्षित देने के लिए आपको सदा सर्वदा याद करेंगे।
आज भारत की हवा कुछ-कुछ बदहवास सी लग रही है। कुछ-कुछ ठहरी ठहरी और सहमी हुई सी क्योंकि मौतों के सिलसिलों में प्राणों को बचाने की जिद्दोजहद कुछ कम डरावनी नहीं है। अनदेखे अनपहचाने शत्रु से लड़ाई है, हथियार पास है नहीं। बस, अपनी अन्दर की ताकत के आधार पर अपने पर विश्वास के सहारे युद्ध लड़ रहे हैं। खुदा खैर करे! पर डरे नहीं, मानसिक ताकत और अपने पर विश्वास ही हमें कोरोना से सुरक्षित रखेगा, यकीन जानिए क्योंकि ……..

मनु से मानव तक और मानव से मन तक
तुम सेतु से खड़े हो देव, इस पार से उस पार के किनारों पर
तुम्हारे सामने याचक बनी खड़ी है, संसार की भौंचक विश्वसनीयता।
माना तुम दूर हो पास नहीं, आगत नहीं अनागत हो।
अनदेखे परदों में परछाई से हो, पर देव हो दानव तो कभी नहीं।
इस सदी के इस युग में, तुम्हारा इम्तिहान है परीक्षा तो देनी ही होगी।
तुमने ही तो वादा किया था, जब-जब तुम्हें जरूरत हुई मैं आऊंगा।
आज आह्वान है कर्पूर चंदन जल के साथ, चक्र उठाएं प्रभू और इस विपत्ति का अंत करें।
हवन कुण्ड में विश्वास भस्म न हो, उससे पहले आत्माओं को विश्वास से भरें देव।

और इसी विश्वास पर हम अपनी अन्दर की शक्ति, को सुरक्षित रखेंगे, यकीन जानें।
बस यहीं तक ….

‘शुभम्Ó!

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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