व्यंग्य लेख ……….. मामू की मिल्कियत

 व्यंग्य लेख ………..   मामू की मिल्कियत

रामस्वरूप रावतसरे (शाहपुरा, जयपुर)
मो. 98285 32633

राजस्थान में सत्ता के लिए हो रहे संघर्ष को देख कर यह कहीं भी नहीं लगता कि ये तथाकथित जनसेवक जनता के लिए चुनाव जीत कर आते हैं। चुनावों के समय जो पसीना बहाया जाता है वह सिर्फ और सिर्फ अपने सुख और आगामी वर्षो की सुविधा के लिए बहाया जाता है। सिद्धान्त और नैतिकता का चोला जनता को भ्रमित करने के लिए ही होता है अन्यथा अन्दर के हालात तो बड़े ही विकट हंै। जिसको सत्ता की कुर्सी मिल गई वह उसे अपनी मिल्कियत समझ रहा है जिसको नहीं मिली या कम मिली, वह पूरी हासिल करने के लिए अपने नैतिक सिद्धान्तों को माचिस दिखाने से भी नहीं चूक रहा है।
राज्य सभा चुनावों में राज्य सरकार सिमट कर एक होटल में चली गई थी। सुनने में यह भी आ रहा है कि माननीयों ने वहीं बैठकर सरकार चलाई थी। उसके बाद कुछ दिन तो ठीक रहा अब फिर सरकार होटल में बन्द है। वहीं से सारे काम हो रहे हंै कोई किसी प्रकार का झंझट झमेला नहीं है। यह देखकर लगता है इनके ऑफिस व बंगलों की देखरेख तथा सुरक्षा आदि पर जो हर साल करोड़ों का खर्च किया जाता है वह बेकार ही किया जाता है। सरकार होटल से ही चलाई जा सकती है।
घर के दो सबसे बड़े माने जाने वाले आमने सामने खड़े घुर्रा रहे हैं। जब दोनों की चोंच मिली हुई थी तो सब आनन्द था और ज्योंहि एक ने अपनी चौंच निकाल ली, बखेड़ा खड़ा हो गया। दोनों एक दूसरे पर दोषारोपण करने लग गये। समाचारों के अनुसार गहलोत जी ने सचिन पायलट के लिए कहा है कि सात साल के अन्दर एक मात्र राजस्थान ऐसा राज्य था जहां प्रदेशाध्यक्ष बदलने की मांग नहीं उठी। हम जानते थे कि यह निकम्मा है, नाकारा है, कुछ काम नहीं कर रहा और खाली लोगों को लड़वा रहा है। मैं यहां बैंगन बेचने नहीं आया हूं, जनता की सेवा करने आया हूं। राजनैतिक स्तर पर क्या बेचा और खरीदा जा रहा है, जनता के सामने आ चुका है। यह उस राजनीतिक पार्टी का चेहरा है जो प्रदेश की सत्ता पर काबिज है।
एक कपड़े फाड़कर चला गया दूसरा उसके अन्डर गारमेन्ट तक को गिनाने में लग रहा है। जनता कहां है, जनता की समस्याएं कहां है। कहां है इनके घोषणा पत्र जिन्हें ये चुनावों के समय लहरा कर गलों को फाड़ा करते थे। इनके वे अगुवा जो विमानों में बैठकर आते थे और इन्हें ही जनता का सबसे बड़ा हितैषी बताते थे लेकिन इस घटनाक्रम को देखकर अब यही लग रहा है कि जनता के हित और उसकी समस्याओं के समाधान के लिए इनका विलाप करना, इनके घोषणा पत्र मात्र दिखावा ही है। ये सब उस कुर्सी तक पहुंचने के साधन मात्र हंै। चुनाव जीतने के बाद ये सरकारी तन्त्र के पहरे में, अन्दर अपने कामों में लगे रहते हैं। जनता दरवाजे के बाहर खड़ी गिड़गिड़ाती रहती है।
सबसे बड़ी बात तो ये है कि जिस मतदाता के हाथ जोड़कर, पैर पकड़कर जीतकर आते हंै उसे ये अपनी बपोती समझने लगते हैं। वार्ड पार्षद वार्ड को अपनी मिल्कियत मानता है। उससे आगे क्षेत्र के अनुसार इनकी मिल्कियत का दायरा भी बढ़ता जाता है। ये उस मिल्कियत के राजा होते हैं और उस क्षेत्र के अन्तर्गत आने वाली जनता इनकी प्रजा। इसी चक्कर में घर पर कब्जे को लेकर दो लड़ रहे हैं। तीसरा इस फिराक में है कि यह लड़ाई ठण्डी नहीं पडऩी चाहिये। तीनों ही जनता के नुमाईन्दे हंै। दो होटल की आबोहवा में अपनी राजनीति की धार पैनी कर रहे हैं। तीसरा एक के लिए कांटे तो दूसरे के लिए कॉलीन बिछा रहा बताया जा रहा है। सरकारी तन्त्र जनता के कामकाज को छोड़कर अपने कार्यालय और होटल के मध्य की दूरी को नाप रहा है। जनता कोविड के साथ कबड्डी खेल रही है और नेता आपस में।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

Related post