डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
हर संकट का सुरक्षा कवच है, मां का आंचल
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शहरों के बन्द में वीरानी पसरी पड़ी थी उसी समय मानवों के बढ़ते सैलाब में देश की महंगी चौड़ी सड़कें उफनी पड़ी थी, ऐसे खौफनाक दिनों में दो तारीखें ऐसी आई जिसमें लगा यदि ये नहीं होती तो दुनियां कैसी होती? ‘मदर्स डेÓ, मां का दिन। हम अपनी मां को सम्मान देने के लिए इस दिन उनको शुक्रिया अदा करते हैं कि, मां तुम थी, हो या होगी तभी मनुष्य का जीवन निरन्तरता की ओर अग्रसर होगा। वो युगों को जोडऩे वाली सूत्रधार रेशम की डोरी है जो एक युग से दूसरे युग को गति देती है। वो जन्म देती है, सम्भालती है, संवारती है और अगले रास्तों के लिए रवाना करती है। कभी रो कर, कभी हंस कर तो कभी गमजदा होकर, पर वो सब कुछ धैर्य से करती है। चार दीवारों के मकान को घर बनाती है। रसोई जगाती है, जिन्दगी महकाती है और जिन्दगी के ताने बानों को सुलझाती हुई एक आदर्श परिवार की नींव रखती है। हम उनके शुक्रगुजार हैं। सजदे में झुके हुए हैं, क्योंकि जितनी भी दूर निकल जाओ लौट के आने को प्रेरित करती मां ही होती है।
आज देश के हर रास्ते पर एक सैलाब आया हुआ है। पुरूषों का हर पैर घर पहुंचना चाहता है, हर आंख अपने गांव की पगडंडी को एक बार अपने पैरों से छू लेना चाहती है। हर मजदूर अपनी मां के आगोश में पहुंच जाना चाहता है। ये सैलाब मनुष्यों का, उन मजबूर जिन्दगियों का है जो हर रोज कमा कर अपने घर का चूल्हा जलाते हैं। वे आज खाली हाथ हैं। पर वे भी घर पहुंचना चाहते हैं क्योंकि उस घर के आंगन के दरवाजे को पकड़े एक मां अपने बच्चों के लौटने का इन्तजार कर रही होगी। उस मां के सीने से लग वो अपने दर्द को भूल जाएगा।
पैरों के छाले, सिर पर तपती धूप, बदन पर धारोधार उतरता पसीना, साथ में है भीगा आंचल, भीगी आंखें और भीगे अपने राजकुमार के साथ उस परिवार की धुरी उसकी पत्नि। मां का वो साहस, ममता और सुरक्षा की घनी छांव बन चल रही है, कदम से कदम मिला क्योंकि वो अपने बच्चों की मां है और अपनी मां से मिलने की अदम्य इच्छा। उसे नंगे पांव चलने से रोक नहीं रहा है कोई धधकता पथरीला राजपथ।
पुरोता, प्रथम पुरूष, प्रथम नागरिक, प्रथम पूंजीपति, सब सायों में सोये हैं। मुंह पर मास्क लगा लम्बे लम्बे वादे कर रहे हैं। सुरक्षा के अभेद्य किले से भयानक परिस्थितियों को ललकारने का कायरता भरा प्रयास है उनका, जबकि देश की हर विथि पर हर पड़ाव पर हर जंगल की कठोरता में जो चले चल रहे हैं, उनकी सुरक्षा उनका गमछा है जो मजदूरी करते समय उसकी पीठ पर या कन्धों पर होता है। आज वो मास्क बना उसकी सांसों को सुरक्षित रखे है कितना! क्या आप नहीं जानते? उसके पास खोने के लिए कुछ भी नहीं है, सांसों के अलावा और वो उसी को दांव पर लगा कर अपनी मां के आगोश में पहुंचना चाहता है। रश्क होना चाहिए मां के ममत्व पर कि, वो बच्चा अपनी मृत्यु तक मां की नाल से जुड़ा होता है और इसीलिए लौटता है सदा सर्वदा अपनी जननी के आगोश में।
मेरी मां ने मेरी हथेलियों में अपनी अन्तिम सांस ली, मैं चौंकी थी, चौंकी रह गई, खूब चिल्लाई, खूब वापस बुलाया, वो नहीं बोली और उसके बाद हर बरस दिनों महिनों में कितनी यादों की चिट्ठी उसे लिखी वो वापस नहीं लौटी और उसके जाने के साथ ही उसका सुबह उठ कर चुल्हा जगना, मुझे जगाना, गाय को जगाना, सूरज को आंगन में बुला आंगन जगाना, खेत में दराती चला घास काट कर खेत को जगाना, कुंए से कलछे को भरने बाल्टी डाल कुंए को जगाना खत्म हो गया है। पीहर आज भी जाती हूं पर वो दौड़ कर मां का आकर बाहों में भर छाती से लगाना मुंह को चुम्बनों से भर देना और आंखों में आंसू भर पूछना, ‘कैसी है तूÓ अबकी बहोत दिनों बाद आई, क्या काम ज्यादा था मेरी बेटी के पास? अब ऐसा कुछ नहीं रहा है। उनकी बड़ी से फ्रेम मुझे गौर से देखती रहती है मानो जांच रही हो, कैसी है मेरी बेटी?
मां तो वह शह है जो जिन्दगी में उसके बिना कल्पना करना ही घबराहटों से भरने जैसा हो उठता है दिल। तुझे सैकड़ों सलाम मां, सैकड़ों सजदे, सैकड़ों दुआएं प्रार्थनाएं। मन्दिर की घंटियों सा है तेरा प्यार विश्वास पवित्र सदा सर्वदा पृथ्वी के रहने तक बना रहे। हमारे जीवन में चांद सूरज की तरह दिन रात तू आकर हमें संवारती, सम्भालती और पोषित करती रहे।
एक युग था जब अस्पतालों के मरीजों की सेवा करने, देखभाल करने का जिम्मा सिर्फ डॉक्टरों या कम्पाउण्डरों के पास रहता था। पर पहली नारी नर्स ने जब अपने जीवन का उद्देश्य बीमारों की सेवा करने को बनाया तो वो नर्स जिस दिन (12 मई 1820) पैदा हुई थी उसी दिन को ‘नर्स दिवसÓ के रूप में हम याद कर उस पहली कोमल हाथों, कोमल मन वाली नर्स का सम्मान करते हैं।
वो पहली नर्स, ‘फ्लोरेंस नाइटएंगलÓ थीं। आज के संदर्भ में वे अहम हैं। आज मौत का ताण्डव पूरे विश्व में फैल चुका है। ये कलयुगी जहर भरी बीमारी है। छूते ही दूसरों को पकड़ लेती है। ऐसी स्थिति में हम लगातार देख रहे हैं, डॉक्टर कम्पाउण्डरों के साथ नर्स भी अपनी पूरी जिम्मेदारी से कत्र्तव्य को निभा रही है। खुद बीमार भी हो रही है। अपने परिवार, बच्चों, घर से दूर रहकर मरीजों की सेवा कर रही है। छोटे-छोटे बच्चे जो इस बीमारी से संक्रमित हो रहे हैं, मां की तरह देखभाल कर रही है। हम उन्हें भी लाखों सैल्यूट करते हैं और उनके परिवार व बच्चों को धन्यवाद देते हैं, उनकी बेटी, बहू व मां को ईश्वर सुरक्षित रखे लम्बी जिन्दगी दे और मरीजों की दुआएं उन्हें मिले ऐसी आशा करते हैं।
मां और मां का ही एक अन्य रूप नर्स बनी बेटियों के नाम पिछले दिनों देश दुनिया में बहुत कुछ लिखा गया। उसी कड़ी में हर दिल दुआ से लबरेज है, हर हाथ सैल्यूट में उठ चुका है, हर बच्चा अपनी ईश्वरीय मां के सपनों को साकार करने का संकल्प ले रहा है। बस एक ही ख्वाहिश है, मां हमें अपनी प्रार्थनाओं में शामिल रखना क्योंकि मां की प्रार्थना को ईश्वर कभी अनदेखा, अनसुना नहीं करता।
तेरी नीली वर्दी पर सफेद स्कार्फ
और लम्बे सफेद मोजों में सफेद जूतों में फंसे तुम्हारे पैर
उससे भी ज्यादा प्यारी अदा तुम्हारी
अपने हाथों को अपनी वर्दी की जेबों में डाले
तुम क्या बेमिसाल लगती हो
तुम मुस्कराती हो तो देवतुल्य लगती हो
जब रोगी के माथे पर प्यार से हाथ रखती हो
तब पूरी की पूरी ‘मांÓ लगती हो
उस बूढ़े रोगी को जब प्यार से दवा पिलाती हो
तब लगा तुम उसकी बेटी हो, क्या सच है ये?
नहीं नहीं ऐसा कुछ नहीं है ‘बसÓ
तुम हर रिश्ते में ढल बीमार को
ये हौसला देती हो कि, सिर्फ एक
घूंट दवा, एक छोटा दर्द भरा इंजेक्शन
एक थोड़ा बड़ा ऑपरेशन होने के बाद वो
सच में बिल्कुल अच्छा हो
घर को लौट जाएगा, हां सच वो घर लौट जाएगा।
रातों को रोशनी का लैम्प लिए
आश्वासनों के साथ हर रोगी तक जाती हो
तुम्हारे इसी विश्वास पर ही तो
रोगी ठीक हो घर लौटते हैं।
पर जब वे नहीं लौटते तब तुम्हारी भी
आंखें गीली हो ही जाती हैं ‘लेकिनÓ
तुम शक्ति हो, विश्वास हो
घर लौटने का आश्वासन हो। इसीलिए-
तुम्हें हम, तुम्हारी और सभी सेवा के लिए
धन्यवाद देते हैं।
शुभम!