डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
सफलता की सीढ़ी…
अवप्राक्कलन का सिद्धांत
व्यक्ति एक सामाजिक प्राणी है और भीड़ में व्यक्ति स्वयं को श्रेष्ठ साबित करने के लिए आंकलन के मानदण्ड को अपनाता है, यह मानव स्वभाव है परन्तु मानव मस्तिष्क में विपरीत मनोस्थिति भी विद्यमान है जो उसे कम आंकलन या अवप्राक्कलन (ठ्ठस्रद्गह्म् द्गह्यह्लद्बद्वड्डह्लद्ग) के विचारों में सत्यता से बहुत दूर ले जाती है। व्यक्ति को स्वयं की क्षमता का कम आंकलन नहीं करना चाहिए क्योंकि जो सकारात्मक कदम आपके द्वारा उठाए जाएंगे वही आपको अपनी और दुनिया की नजर में ऊपर उठाएंगे।
व्यक्ति के जीवन में यदि कोई बुरी घटना घटती है तब उससे आपेक्षित है कि वह स्वयं को दूसरों से कमतर न आंके। अवप्राक्कलन के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति जीवन में महानतम पाठ उसके सबसे बुरे समय में सीखता है जब उसके द्वारा बड़ी भूल हुई हो। जिसके पश्चात व्यक्ति आत्मविश्वास खो देता है फलस्वरूप उसे असफलता से डर लगने लगता है। जीवन के निर्णय हो या अपनी बात रखनी हो वह सदैव घबराता और टूटता है और इस असमंजस में रहता है कि, कहीं उससे गलती दोहरा नहीं दी जाए जिसके रहते अपने कार्य, काबिलियत का शत प्रतिशत नहीं दे पाता। थोड़े दिनों में वह अपनी क्षमता पर विश्वास खोने लगता है और धीरे-धीरे वह स्वयं को दूसरों से कमतर आंकने लगता है जबकि उसमें दूसरों से अधिक प्रतिभा और क्षमता होती है और यहां से वह अवप्राक्कलन के भंवर में फंसता चला जाता है।
व्यक्ति को स्वयं या अपने प्रतिद्वंदी को कभी कमतर नहीं आंकना चाहिए। दोनों ही आपको अपनी प्रतिभा और क्षमता से चौंका सकते हैं। अत: व्यक्ति प्रतिभा और क्षमता को कम आंकने की भूल ना करे। व्यक्ति के लिए यह असंभव है कि वह अपना जीवन दूसरों की अपेक्षानुसार जिए। व्यक्ति के मन में सदैव यह कशमकश रहती है कि, वह क्या बात है जो उसे निरंतर प्रभावित करती रहती है, वह सदैव इस बात से असंतुष्ट रहता है कि, क्या वह समाज या संसार को अपने कार्य से सहयोग कर रहा है या नहीं जैसे उसे दूसरों को देखकर प्रतीत होता है। यह मानव स्वभाव है जो किसी दूसरे व्यक्ति के बारे में हाथ लगी सूचना से बिना जाने खोज खबर लिए स्वयं उसके प्रति मिथ्या धारणा बना लेता है और स्वयं ही अपने आपको बेहतर या कमतर आंकने लगता है और अक्सर देखा गया है कि, व्यक्ति अवप्राक्कलन का शिकार बन जाता है।
यदि व्यक्ति को अवप्राक्कलन के सिद्धांत (क्कह्म्द्बठ्ठष्द्बश्चद्यद्ग शद्घ ठ्ठस्रद्गह्म् द्गह्यह्लद्बद्वड्डह्लद्बशठ्ठ) को समझना है तो उससे आपेक्षित है कि, वह अपने मूल्य को समझे, यह कहना आसान है पर करना मुश्किल। व्यक्ति को नकारात्मक टिप्पणियों, व्यवहार को अनदेखा करना आवश्यक है किन्तु यह प्रक्रिया जटिल है क्योंकि व्यक्ति नकारात्मकता झेलकर एक समय उन टिप्पणियों को सत्य मानने लगता है और उसके लिए कठिन हो जाता है नकारात्मक विचारों को दूर रखना जिसका कारगर मार्ग व्यक्ति द्वारा अपने आपका अभिनंदन करना आवश्यक है, घर के भीतर या घर से निकलते हुए या काम पर जाते हुए तैयार होते समय शीशे के समक्ष खड़े होकर अपने गुणों का स्मरण करना जो आपको दूसरों से श्रेष्ठ और पृथक करता है। वह गुण जो आपको विशेष महसूस कराते हैं, यहां व्यक्ति को अपने भूतकाल की उन स्मृतियों का भी स्मरण करना चाहिए जो उन्हें अपनी उपलब्धि से रूबरू कराती है, चाहे आपकी उपलब्धि कितनी छोटी क्यों ना हो? ऐसी स्मृतियां आपके आज में आपके महत्व का बोध कराएगी और आपकी प्रतिभा को कभी कम नहीं आंकने देगी। व्यक्ति से आपेक्षित है कि, वह स्वयं को सम्मान दे, अपनी दिनचर्या को व अपनी प्रतिभा को समय के साथ और निखारे, अपने कार्य में, चाल-ढाल में, कपड़ों में आपकी श्रेष्ठता प्रतिबिंबित होनी चाहिए।
देखा गया है कि, व्यक्ति दूसरों द्वारा बनाई गई धारणाओं से सहज ही प्रभावित होता है, जैसे किसी और के नजरिये को बिना देखे भाले अपनी सहूलियत अनुसार अपना लेता है। यहां आपसे आपेक्षित है कि आप संवाद का सहारा लें। इसका यह आशय कतई नहीं है कि, हम अपने अवप्राक्कलन का स्पष्टीकरण दें अपितु संवाद कायम कर सकें क्योंकि संवाद कई भ्रांतियों को दूर करता है। आपके संवाद से सामने वाला व्यक्ति आपको जान पाएगा और आपके संदर्भ में उसकी मान्यता बदलेगी और देखते ही देखते उसके नकारात्मक विचार सकारात्मक हो जाएंगे नहीं तो कम से कम निष्पक्ष तो अवश्य ही हो जाएंगे। जो लोग आपकी अवप्राक्कलन करते हैं वह अवश्य ही आपके बारे में वह बात जानते हैं जिससे आप अनभिज्ञ हैं। ऐसे लोगों की बातों पर आप गहन अध्ययन करें, आपसे अपेक्षित है कि, आप उनके विचारों को बारीकी से समझें। यह समझने की आपको आवश्यकता है कि, ऐसे विचार उनके मस्तिष्क पटल पर क्यों उपजे? उनके विचारों को नकारात्मक न लेकर सकारात्मकता से निष्पक्ष होकर ग्रहण करें जिससे आप अपने भीतर की कमियों से दो-चार हो पाएंगे।
सफलता की सीढ़ी चाहती है कि, आप अपना जीवन और जीवन मार्ग स्वयं चुनें। आपको इस बात से कोई फर्क नहीं पडऩा चाहिए कि, लोग आपके लिए क्या राय कायम करते हैं। आपको स्वयं को मूल्यवान समझना होगा। यदि आपको यह ज्ञान है कि, आपका उद्देश्य क्या है या आपने अपने जीवन को क्या दिशा-निर्देश दिया है तब आपको लोगों की मन:स्थिति से कोई विशेष फर्क नहीं पड़ेगा। आप स्वयं का सम्मान अपनी नजरों में और जीवन में कर पाएंगे जिसके रहते आपका आत्मसम्मान आपको सदैव आगे बढऩे में मदद करेगा।