सफलता की सीढ़ी… सफलता का सबसे बड़ा कारक योग्यता नहीं, नजरिया होता है

सफलता की सीढ़ी का ध्येय सफलता के मार्ग में आने वाली अड़चनों से अवगत कराना और अड़चनों को भांपने की शक्ति प्रदान करने से है ताकि आप इनके समाधान पर ध्यान केंद्रित करें जिसके फलस्वरूप यह अड़चन आप और आपके लक्ष्य के बीच में बाधा बनकर न खड़ी हो जाए और आप अपने सफलता के मार्ग से विचलित न हो जाएं।
सफलता की सीढ़ी ने पूर्व में सकारात्मक और सदैव प्रसन्न रहकर अपने लक्ष्य के मार्ग पर अग्रसर रहने का बोध कराया है परंतु जब कभी परिस्थितियों पर चर्चा होती है तब यह प्रश्न प्रत्यक्ष रूप से उठता है कि, ‘हम खुश रहकर पढऩा चाहते हैं परंतु कोई न कोई परिस्थिति या व्यक्ति हमें नकारात्मक सोच में ढकेल देता हैÓ। घर की माली हालत हो, किसी आवश्यक कार्य से तैयारी के बीच में घर जाने की आवश्यकता, घर के कोई आयोजन से पढ़ाई बिगडऩा, घर के झगड़े, मित्रों, परिजनों एवं शिक्षकों द्वारा पढ़ाई में कमजोर सिद्ध करने की चेष्टा करना आदि, आदि। सफलता की सीढ़ी चाहती है कि आप दो क्षण रुकें और मंथन करें कि आप इन परिस्थितियों के लिए किसे जिम्मेदार मानते हैं? भीतर की नकारात्मक भावना का जिम्मेदार कौन है? आपको यह समझना होगा कि इन नकारात्मक सोच के लिए कोई भी परिस्थिति या व्यक्ति जिम्मेदार नहीं है, आपको यह भी समझना होगा इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आपसे किसने और कितना बुरा व्यवहार किया, आपके द्वारा उस परिस्थिति और व्यक्ति पर दोषारोपण करना उचित नहीं है क्योंकि ऐसे समय में जो भावनाएं हमारे मन में आई उसके लिए न वह परिस्थितियां और न वह व्यक्ति जिम्मेदार है, बल्कि हमारी भावनाओं का उत्तरदायित्व हमें खुद उठाना है, चाहे परिस्थितियों या व्यक्ति का व्यवहार कितना भी कटु और घृणासपद क्यों ना हो, हम हमारी सोच और नजरिया के लिए स्वयं उत्तरदाई हैं।
व्यक्ति को जैसी भी बाहरी परिस्थितियां हो अपनी भावनात्मक प्रतिक्रिया चुनने के लिए अपने आप को स्वतंत्र रखना चाहिए। प्रतिस्पर्धा के मायने केवल पुस्तक पढ़कर नंबर प्राप्त करना ही नहीं है बल्कि प्रतिस्पर्धा का उद्देश्य प्रतियोगी का सर्वांगीण विकास से है। सर्वांगीण विकास का तात्पर्य केवल बौद्धिक विकास से नहीं है अपितु भावनात्मक, क्रियाशील, कौशलपूर्ण विकास भी अपेक्षित है। जिसकी आवश्यकता प्रतियोगिता रूपी चक्रव्यूह को भेदने के लिए आवश्यक है, इसके अभाव में आप कोई भी प्रतिस्पर्धा नहीं जीत सकते। प्रतिस्पर्धा में प्रतियोगी के लिए सबसे कठिन होता है भावनात्मक परिपक्वता विकसित करना, जिससे वह परिस्थितियों के अनुरूप अपनी प्रतिक्रिया को नियंत्रित करने में सिद्धहस्त हो जाता है।
थॉमस अल्वा एडिसन एक ऐसे छात्र थे जिन्हें स्कूल से मंदबुद्धि विद्यार्थी बोलकर निकाल दिया गया था जिनकी माता ने उन्हें स्कूल ना भेजकर स्वयं पढ़ाने का बीड़ा उठाया था, जो अपने जीवन में एक महान वैज्ञानिक बने और जिन्होंने आगे चलकर ‘बल्बÓ का आविष्कार किया। एडिशन का एक किस्सा याद आता है जब एडिशन पूरी तन्मयता से अपने रिसर्च पर काम कर रहे थे, उनका साथी वैज्ञानिक उनकी लैब में आया और कुर्सी पर बैठ गया। कुर्सी के सामने टेबल पर एडिशन का खाना लगा हुआ था जो प्रयोग में व्यस्त होने की वजह से उन्होंने खाया नहीं था, स्वादिष्ट खाना देखकर साथी वैज्ञानिक को रहा नहीं गया और उसने खाना खा लिया, एडिशन जब अपना प्रयोग खत्म कर साथी वैज्ञानिक के पास लगी कुर्सी पर बैठे तो उनकी नजर भोजन की खाली प्लेट पर पड़ी, उन्होंने अपने साथी वैज्ञानिक से कहा कि, ‘आज कुछ ज्यादा ही खा लिया, देखो ना पूरी प्लेट साफ कर दी।Ó यहां एडिशन अपना एक लंबा प्रयोग पूरा कर अपना भोजन करना चाहते थे जिसे उनका साथी वैज्ञानिक चट कर गया। ऐसी परिस्थिति में उनके साथी वैज्ञानिक द्वारा ऐसा कृत्य किया गया जिस पर अधिकांश लोगों की प्रतिक्रिया कठोर होनी अपेक्षित है। विभिन्न विचार मस्तिष्क में नकारात्मक सोच उत्पन्न करते हैं जैसे वे सोच सकते थे कि काम पूरा करने के बाद खाना भी नसीब नहीं, या अपने साथी वैज्ञानिक पर चिल्ला सकते थे, या उसे चेता सकते थे कि आइंदा ऐसी हरकत ना करें, या अपनी प्रयोगशाला में आने से मना कर सकते थे, जिसके विपरीत उन्होंने परिस्थितियों को समझ कर उसके अनुरूप प्रतिक्रिया की और अपना आपा नहीं खोया बल्कि भीतर उत्पन्न नकारात्मक सोच का उसी क्षण दमन कर दिया। ऐसी सोच को अपने ऊपर हावी नहीं होने दिया जिससे उनकी भावनात्मक परिपक्वता का परिचय मिलता है और उन्होंने व्यक्ति के नकारात्मक कृत्य पर विजय प्राप्त की क्योंकि उनका उद्देश्य अपने रिसर्च के प्रयोग पर अपना ध्यान केंद्रित कर बल्ब का आविष्कार करना था। ऐसे परम उद्देश्य में वह अपना कंसंट्रेशन किसी भी नकारात्मक सोच से भंग नहीं करना चाहते थे।
यहां एडिशन का एक और किस्सा साझा करना आवश्यक है- सफलता हाथ बांधकर इंतजार करने से प्राप्त नहीं होती। उसके लिए धैर्य, कंसंट्रेशन, दृढ़ इरादों की पूरी -पूरी परीक्षा देनी होती है। एडिशन को अपने बल्ब के आविष्कार को अंजाम देने के लिए कई परीक्षाओं से गुजरना पड़ा। जब एक जगह जाकर एडिशन का प्रयोग रुक गया। उन्हें ऐसे फिलामेंट की खोज करनी थी जिससे बल्ब रोशन हो सके जिसकी खोज के लिए उन्हें 1 वर्ष से अधिक का समय लगा। इस दरमियान उन्होंने 6000 से अधिक फिलामेंट पर प्रयोग किया तब जाकर उन्हें 1 वर्ष बाद कार्बन फिलामेंट हाथ लगा था जिससे बल्ब को प्रकाश मिला। सोचिए, 6000 नाकामियां हाथ लगने के बाद भी उन्होंने परिस्थितियों से हार नहीं मानी और उनकी सोच कभी नकारात्मक नहीं हुई क्योंकि उन्होंने सकारात्मक भावना और विचार को कभी भी अपने मन से जाने नहीं दिया। फलस्वरूप उनका कंसंट्रेशन कभी भंग नहीं हुआ। उन्होंने सकारात्मक प्रतिक्रिया अपनाते हुए परिस्थितियों पर विजय प्राप्त कर बल्ब का आविष्कार कर डाला। उक्त दो उदाहरण बाहरी परिस्थितियों एवं व्यक्ति विशेष द्वारा भीतर उत्पन्न नकारात्मक सोच को नियंत्रित करने के सटीक उदाहरण हंै। परिस्थितियों के अनुरूप हम क्या प्रतिक्रिया करते हैं और इन प्रतिक्रियाओं को नियंत्रित कैसे करते हैं, यदि इस सिद्धांत का बोध हमें हो जाए तो परिस्थितियों या व्यक्ति द्वारा रचित कोई घटना से हम प्रभावित ना होकर स्वयं की भावनाओं पर नियंत्रण प्राप्त कर लेंगे।
सफलता की सीढ़ी का मानना है कि ज्यादातर लोग नकारात्मक परिस्थितियों पर अपना ध्यान केंद्रित करते हैं, उन्हें लगता है कि जो परिस्थितियां विद्यमान है वह उनके बस से बाहर की हैं, यही कारण है कि वह अपनी भीतर की भावनाओं पर सकारात्मक प्रतिक्रिया नहीं कर पाते और परिवर्तन के सिद्धांत से चूक जाते हैं और सदैव अपनी भावनाओं, सोच को परिवर्तित करने की जिम्मेदारी लेने से कतराते हैं, फलस्वरूप वह कभी परिस्थितियों को, या कभी व्यक्ति विशेष को, कभी समय को तो कभी भाग्य को… या अंत में हार कर भगवान पर दोषारोपण कर अपने उत्तरदायित्व से पल्ला झाड़ लेते हैं, अपने विचारों और भावनाओं को परिस्थितियों, व्यक्ति विशेष, समय काल की कठपुतलियां बना लेते हैं उनका मन सदैव परिस्थितियों और व्यक्तियों द्वारा उत्पन्न विचारों से अशांत व प्रभावित रहता है।
सफलता की सीढ़ी चाहती है कि आप परिस्थितियों को गुनहगार न बनाएं अपने आप में सकारात्मक सोच विकसित करें, परिस्थितियों पर विजय सकारात्मक सोच की प्रक्रिया से प्राप्त की जा सकती है ताकि हम हमारे परम लक्ष्य पर ध्यान केंद्रित कर सफल हो सकें। यदि सफलता की गाड़ी का स्टीयरिंग परिस्थितियों को सौंप दिया तो यह गाड़ी कभी लक्ष्य तक नहीं पहुंच पाएगी।
‘सफलता योग्यता से नहीं आपके नजरिये से प्राप्त होती है।Ó

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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