सफलता की सीढ़ी… सफलता का मूल है आत्म अनुशासन

 सफलता  की  सीढ़ी… सफलता का मूल है आत्म अनुशासन

 

व्यक्ति अपने ख्वाब और हकीकत के बीच की दूरी अपने आत्मअनुशासन से पूरी करता है। व्यक्ति की स्वयं से निकटता उसका सामान्य व्यवहार है जिससे उत्पन्न मनोभाव भी स्वाभाविक हैं। ऐसे भाव के अनुरूप किसी विशिष्ट उद्देश्य के लिए की गई अनुपालना व्यक्ति का भविष्य निर्धारित करती है। यह वह अलौकिक शक्ति है जो मानव को अन्य जीवों से पृथक करती है जो उसे मस्तिष्क के चिंतन की खोज का बोध कराती है और उद्देश्य व लक्ष्य प्राप्ति के बीज को प्रस्फुटित करती है। हम ऐसी शक्ति को सक्रिय करने के लिए दुनिया जहान का ज्ञान प्राप्त करते हैं, कभी माता-पिता की सीखों से, संस्कारों से, गुरूजनों के उपदेशों से, अन्त में अथाह ज्ञान के भण्डार हमारी पुस्तकों से, बहरहाल इस ज्ञान प्राप्ति के पश्चात हम जाने-अनजाने अपने आपको अतिविशिष्ट का दर्जा देने लगते हैं और इसमें कोई दो राय नहीं है कि, मानव जीवन को अन्य जीवों के जीवन की तुलनात्मक दृष्टि से अनमोल धरोहर कहा गया है और कहें भी क्यों ना? यह मानव ही तो है जो अपने जीवन काल में उद्देश्य प्राप्ति में निरंतर प्रयासरत रहकर अपने जीवन को अतिविशिष्ट बनाता है।
मस्तिष्क बहुत कुछ सोच लेता है, उसके अनुरूप योजनाएं, रणनीति और परिकल्पना उसकी तीक्ष्णता को दर्शाती है परन्तु अक्सर इन योजनाओं के क्रियान्वयन में जोश और जज्बे का अभाव देखा गया है। क्रियान्वयन के सिद्धांत में मानव दूसरे जन्तुओं से पीछे है। जन्तु क्रियान्वयन के सिद्धांत को बखूबी समझते हैं क्योंकि वह आत्मअनुशासन के सिद्धांत को बखूबी समझते हैं और उसकी महत्वतता को भली भांति समझकर उसकी पालना करते हैं। कभी उनकी अनुशासनात्मक दिनचर्या का अध्ययन करियेगा…. बड़ी रोचक मालूम पड़ेगी।
व्यक्ति के भविश्य को मापने का उत्तम तरीका व्यक्ति द्वारा अपने भविष्य का सृजन करने में है। अनुशासित व्यक्ति द्वारा तय उद्देश्य की प्राप्ति के लिए उठाए अति-आवश्यक कदम उसकी सफलता प्राप्ति की अभिलाषा के लिए अनिवार्य हैं। अनुशासन व्यक्ति की समय प्रबंधन की नींव के अनिवार्य स्तम्भ हैं। अनुशासन वह मार्गदर्शक है जो व्यक्ति को समय की गतिनुसार चलायमान बनाता है। अनुशासन का प्रतियोगिता के परिप्रेक्ष्य में अर्थ समय की बचत से भी है और अपने प्रतियोगियों से कुछ अधिक समय होने से भी है। अधिक समय से तात्पर्य अधिक स्वतंत्रता देता है जो उसे दूसरों से समय के परिप्रेक्ष्य में धनी बनाते हैं जो उसे अपने प्रतियोगी से विजय बढ़त बनाने में बेहद कारगर सिद्ध होती है। अनुशासन का अभिप्राय निरंतरता से भी है। विकास के सिद्धांत के अनुसार व्यक्ति की उत्पत्ति उसकी क्रमिक निरंतरता से प्राप्त होती है। व्यक्ति को सफलता अनायास नहीं मिलती अपितु निरंतर अभ्यास व क्रमिक विकास के पथ पर अग्रसर होकर प्राप्त होती है।
क्या आप जानते हैं प्रत्येक व्यक्ति अपने लक्ष्य और उद्देश्य तो तय करता है परन्तु 99 प्रतिशत उसे प्राप्त करने में असफल होते हैं। सफलता की सीढ़ी पर चढ़ते हुए व्यक्ति को लक्ष्य और उद्देश्य की खोज और क्रियान्वयन व अनुशासन के चश्मे से देखना आवश्यक है। अनुशासन क्रियान्वयन का ईंधन है जिसकी किल्लत में व्यक्ति बंद गाड़ी की तरह ैहै।
सफलता क्रमिक विकास से प्राप्त होती है जो अनुशासन के अभाव में असंभव है, सफलता एक सतत प्रक्रिया है। प्रत्येक दिन उठकर उसी जज्बे और जुनून के साथ लक्ष्य की ओर बढऩा, जब तक आप उसे पा न लें। यह कहना सरल है परन्तु असल में है कठिन, जो केवल अनुशासन से ही मुमकिन है।
यदि आप वह कार्य करते हैं जिसे करने में आपको कोई रूचि नहीं है तो ऐसा कार्य आपको वहां तक ले जाएगा जिसे हम उपलब्धि कहते हैं और यह उपलब्धि की निरंतरता हमें सफलता तक ले जाएगी।
आत्म अनुशासन समय प्रबंधन की धुरी है। निरंतरता कार्य को वर्गीकृत करने में सहायक होती है। यह वर्गीकरण व्यक्ति की समय की आवश्यकता की पूर्ति करता है जो क्रमिक विकास की परम आवश्यकता है। यह क्रमिक विकास व्यक्ति को स्थिरता देता है ऐसी स्थिरता जो उसे सदैव परिस्थिति को अपने नियंत्रण में रखने मदद करती है और स्थिरता व्यक्ति को व्याकुल होने नहीं देती। आत्मअनुशासन व्यक्ति को स्थिर मस्तिष्क और मन देता है, यह उसे विचलित नहीं होने देता। एक पुरानी सीख याद आती है, व्यक्ति को जीवन दो में से कोई एक ही कष्ट चुनने की इजाजत देता है, आत्म अनुशासन का कष्ट या पछतावे का कष्ट …. चयन आपको करना है।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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