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सफलता की सीढ़ी… आवश्यकता है परिस्थितियों के सकारात्मक पहलू और अर्थ को समझने की
- अभिषेक सर
- 05-09-2020
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मानव मस्तिष्क सदैव उन्हीं वस्तुओं की ओर इंगित करता है जिसे खोने का डर हो, जिसकी कमी उसके जीवन में हो या कोई असंभव वस्तु परिस्थिति की कल्पना जो उसके जीवन में होना असंभव है। मानव मस्तिष्क की ट्यूनिंग इस प्रकार हुई है कि, वह नकारात्मक परिणाम या बुरी स्थिति के लिए सदैव अपने आपको तैयार रखें क्योंकि मानव जीवन सुरक्षा और उत्तरजीविता (स्क्रङ्कढ्ढङ्क्ररु) के सिद्धांत पर केन्द्रित है। यह मस्तिष्क की अतिविलक्षणता ही है जो उसे सुखद अनुभवों में भी उसके दूरगामी परिणामों से होने वाली क्षति से हतोत्साहित करती है। परिणामस्वरूप व्यक्ति स्वयं से परेशान विचलित डरा सहमा महसूस करता है।
प्रत्येक व्यक्ति अपने जीवन स्तर को सुधारना चाहता है, अपने सपने, महत्वाकांक्षाएं पूरी करना चाहता है परन्तु वह आत्मविश्वास व मनोभाव के अभाव में सदैव अपनी क्षमता से कमतर ही प्रदर्शन करता है। व्यक्ति उसके जीवन में होने वाली घटनाओं को बदल तो नहीं सकता परन्तु जो उसके बस में है वह यह कि, इन घटनाओं से अनुभव प्राप्त कर नकारात्मक व सकारात्मक अनुभवों पर काबू पाने का हुनर सीख ले। व्यक्ति का जीवन तनाव युक्त होता है जहां व्यक्ति केवल अपने दृष्टिकोण से ही मानसिक स्थिति को बदलने में सक्षम है। कठिन परिस्थितियां किसी भी रूप में बिना आहट के व्यक्ति के जीवन में प्रवेश कर जाती हैं। चाहे किसी की नौकरी गई हो या स्वास्थ्य का पाया कमजोर हो अथवा किसी करीबी को खोने का गम। कठिन समय परिस्थितियां कभी-कभी महामारी, आर्थिक संकट के भेष में भी व्यक्ति की दहलीज पर आ खड़ी होती हैं जो व्यक्ति विशेष के लिए ही नहीं अपितु समस्त मानव सभ्यता को अपनी काली परछाई में ले लेती है। ऐसा कुछ जो ना आपने सोचा होता है और जिस पर आपका कोई बस नहीं चलता जो आपको देखते ही देखते चित कर देने की क्षमता रखता है।
हमें यह समझना आवश्यक है कि, तनाव, गुस्सा, बैचैनी, जैसे भाव इन समस्याओं से नहीं उत्पन्न होते, वह इन समस्याओं के भावअर्थों को मस्तिष्क द्वारा रचा जाता है। जो अर्थ व्यक्ति द्वारा उस परिस्थिति में समझा जाता है जो परिणाम उसके द्वारा सोचा जाता है आवश्यक नहीं कि, वह फलीभूत हो। व्यक्ति के जीवन की घटनाओं और अनुभवों के अर्थ को यदि भिन्न दृष्टिकोण और अर्थ भिन्न पहलू से देखें तब व्यक्ति कठिन परिस्थितियों को भिन्न परिप्रेक्ष्य में देख पाएगा।
उदाहरण के तौर पर इस वैश्विक महामारी के दौर में व्यक्ति जहां आर्थिक मोर्चे पर मार झेल रहा है, नौकरीपेशा अपनी नौकरी खोने के डर से परेशान है, व्यवसाय ठप पड़े हैं। ऐसे परिदृश्य में व्यक्ति की सोच के दो पहलू हो सकते हैं। पहला, ‘मैं आर्थिक रूप से कमजोर हो गया हूंÓ या ‘मेरा दिवालिया निकल गया हैÓ। इस परिस्थिति को दूसरे दृष्टिकोण से सोचें और यदि आप इसका अर्थ यह निकालें कि, ‘माना समय बुरा है पर हार नहीं मानूंगा और मेहनत करूंगा, रचनात्मक बनूंगा और पैसे बचाऊंगाÓ। यहां पहली परिस्थिति नकारात्मक अर्थ दर्शित कर रही है वहीं दूसरी ओर सकारात्मकता लिए मनोदशा को मानव मस्तिष्क अपनी सोच से दर्शा रहा है और व्यक्ति को आगे बढऩे की इच्छाशक्ति उसे शब्द के अर्थ बता रहे हैं।
सफलता की सीढ़ी कहना चाहती है कि, कठिन समय, परिस्थितियों की समय अवधि छोटी होती है और ऐसी परिस्थितियों को सकारात्मक दृष्टिकोण से परास्त किया जा सकता है। अपने कर्म पर ध्यान देना आवश्यक है। परिश्रम विकट परिस्थितियों को परास्त करने की क्षमता रखता है। बस, आवश्यकता है परिस्थितियों के सकारात्मक पहलू और अर्थ को समझने की।