भारत के मान सम्मान से खिलवाड़ करने का हक संविधान कभी नहीं देता

समां तितर पंछी बादलों से भरा पड़ा है। भेड़ की पीठ जैसे ये बादल ठीक नौ माह बाद लौटेंगे और जमीन को बारिशों से भर देंगे। हवाएं इस दिशा से उस दिशा की ओर चलने लगी हैं और शाखों से पत्ते गिरने लगे हैं, तो मन ने दिल में झांका, सब कुछ पीला-पीला है और आंखों ने बाहर देखा तो जाना ‘आप’ दरवाजे पर आ खड़ी हुई है। आप यानि बसंत पंचमी, पूरे अदब के साथ गुलाबी ठंड को ओढ़े हुए पीले वस्त्रों में कितनी गरिमामय लग रही है। स्वागत है आपका! पीली सरसों फूल कर पूरे परिवेश को पीले रंग में रंग चुकी है और उस पीले पर्दे पर टेसू के लाल गुलाबी फूल एक अलग नजारा प्रस्तुत कर रहे हैं। धरती ने अपना रंग बदल लिया है, वो हरी से भूरी हो गई है। यह समय विद्यार्थियों के लिए परीक्षा के बेहतर परिणाम हेतु सरस्वती वन्दना का भी है। भारत भारती वो देश है जहां मानसून के साथ विश्व की सभी ऋतुएं मिलती हैं और हम सभी त्यौहारों को ऋतुओं के अनुसार एक अलग अन्दाज में मनाते हैं। ये सभी ऋतुएं हमारे समाज के सामाजिक कामों में भी घुल – मिल गई हैं। यह ऋतु एक भोली-भाली ऋतु है। इसमें आक्रोश नहीं है। न सर्दी की ठिठुरन और ना ही धरती को भट्टी से ज्यादा गरम करने का प्रयास और ना ही घनघोर बारिश से जल-थल एक कर देना। यह एक सौम्य शान्त ऋतु का एक बेहद नजदीकी रूप है। हाल ही में छब्बीस जनवरी बीती है और देश ने पूरे जोश से इस राष्ट्रीय त्यौहार को मनाया है। शहीदों के बलिदानों के वो पन्ने जो शायद हम भूल गए हैं, पढ़ के, वे मुखरित हो सामने फडफ़ड़ाने लगे हैं। ‘मेरा रंग दे बसन्ती चोला मां, मेरा रंग दे बसन्ती चोला’ रंग बसन्ती मन बसन्ती क्योंकि देश को स्वतंत्र कराने के लिए ये शहीदी रंग सब शहीदों ने अपना लिया था। पर क्या हम आज उनकी उस देशभक्ति की आंच से अपने चरित्र को तपा पाए हैं। आज हम सिर्फ धर्म परस्त बनने जा रहे हैं, ऐसा क्यों लगता है? देश परस्त की परिभाषाएं इल्जाम के शब्दों में बदल चुकी हैं। ‘इंकलाब’ अब शक के दायरों में छुप गया है। वो कभी-कभी देशद्रोही के रूप में आसानी से परिभाषित कर दिया जाता है। हमें बसन्त के बसन्ती रंग को वापस अपने जीवन में एक संस्कार के साथ अपनाना होगा। बाबा साहेब अम्बेडकर जी ने शहीदों के बलिदान को संविधान के सांचे में डालकर एक सर्वधर्म सर्वजाति समभाव को दर्शित करने का महती कार्य किया था। आज दुख से कहना पड़ रहा है कि, गांधी व अम्बेडकर जैसे महापुरूषों की गरिमाएं गिराई जा रही हैं। हम राजनीति कर रहे हैं, देशनीति को भुला चुके हैं या अपनी सुविधा के अनुसार उसे परिभाषा दे रहे हैं।
बसन्त ऋतु में अनेकों फूल खिले हैं। उनका रंग रूप खुशबू सब अलग-अलग होती है। भारत भी उसी प्रकार का अनेकों रंग-रूप के धर्म जाति समान आचार-विचार वाला बसन्ती देश है जिसे मोह-मोह के धागे से बांधे रखा है।  
‘यह असल रंग के रंगरेज के मन’ वाला भारत है। हमें इसके मान सम्मान से खिलवाड़ करने का हक संविधान कभी नहीं देता। ए रंगरेजा मेरे भारत को भारतीय रंग से रंग दे ताकि हम भारतीय अपनी अस्मिता को पहचानें और इस बसन्त में ये बासन्ति शपथ लें कि, सर भले ही कट जाए ये झुकेगा नहीं, चाहे जो कर लो अपनी आजादी हम अक्षुण्ण रखेंगे। बसन्त तुम्हें याद रखना है कि, भारत वीर भूमि है और यहां शहीदों के अनेकों ठिकाने हैं जहां झूम कर बसन्त तुम्हें लाना है। मां सरस्वती हमें ज्ञान दो कि, एक सौम्य भारत के लिए सौम्य नौनिहाल अपने मासूम कदमों से मंजिलें नापें और नए भारत का निर्माण करें। 

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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