सत्ता के सतरंग

 सत्ता के सतरंग

इन्द्र भंसाली ‘अमरÓ
जयपुर
मो.नं. 8949508217

हमारा लोकतंत्र इतना कमजोर है कि उसे अपनी रक्षा होटलों में बाड़ाबंदी करके करनी पड़ रही है। क्या जनता को इतना कमजोर लोकतंत्र चाहिए कि जिसके हाथ में सत्ता की कमान दी हो, वो ही रोज इसकी दुहाई देकर चीत्कार करता लगे। जनता को ऐसे नेतृत्व पर शक होना लाजिमी है, वे भी ऐसी महामारी के काल में जहां नेतृत्व को अनेक गरीब लोगों की सुध लेनी हो, जिनके व्यवसाय के पिछले कुछ महिनों में परखच्चे उड़ गये उनके लिए नये पथों का निर्माण करना है, जिनकी नौकरियां चली गई, उनके लिए नई नीतियों का निर्माण कर उनके व नौकरी प्रदाताओं के बीच सेतु का निर्माण करना है। पर कौन देखेगा यह सब जो सक्षम होते हुए भी अक्षमों की तरह इन सब समस्याओं की तरफ पीठ किये बैठे हैं, ताकि वे उसे नजर ही न आवें। क्या सक्षम नेतृत्व के यही लक्षण होते हैं एक कामयाब लोकतंत्र में, जनता को ही विचार करना है। जनता के लिए इन नेताओं के पास उनकी योजनाओं के लिए अचानक कभी भी धनाभाव हो जाता है और वे गुहार लगाते हैं कभी केंद्र से, कभी जनता से कि उन्हें धन उपलब्ध करावें ताकि वे गरीबों की सहायता कर सकेंं, उनकी तकलीफें कम कर सकें पर यहां बाड़ेबंदी में पानी की तरह पैसा बहाने में कोई कोताही नहीं की जा रही। विधायक ही नहीं उनके घर वाले भी मौजमस्ती कर रहे हैं। जनता जाये भाड़ में, हम तो रहेंगे सुरक्षा की आड़ में। कोरोना पर अब कोई नहीं रोता, खुद के लिए रोने से फुरसत मिले तो आगे सोचें। जनता तो पहले भी अपने हाल पर थी, आज भी अपने हाल पर है क्योंकि मुफ्त सरकारी इलाज तो सरकार के इशारे पर होता है या आम आदमी के भाग्य पर उपलब्ध होता है। पाइलट अपने प्लेन को कहां लैंड किये हैं, कोई नहीं जानता। बगावत बड़ी महंगी पड़ी है सत्ता के लिए। उनके लिए भी धन की थैलियां किसी न किसी ने खोल ही रखी हंै। स्वाभिमान के नाम पर अहम् का जाग उठना कभी कभी घाटे का सौदा भी होता है। इस तरह सत्ता का हर विधायक जो जनता का नुमाइंदा है, आजकल सुरक्षा की मांद में पड़ा है। कभी कभी गुर्रा लेता है वहीं से, ताकि मालूम पडता रहे, ‘टाइगर जिंदा हैÓ। स्पीकर का मन भी करता तो होगा बाड़ेबंदी का स्वाद लेने के लिए पर साली पोस्ट ही ऐसी है कि चाहते हुए भी कुछ नहीं कर सकते।
जात पांत में भी हुआ, जात पांत का फेर,
काठ की हांडी चढ़ चुकी, देखो लगती कितनी देर।
माननीय मुख्यमंत्री जी तो चौकड़ी ही भूल चुके हैं। बचपन में पढ़ी एक कहानी ही भूल गये कि दो बंदरों की लड़ाई में पूरी रोटी बिल्ली ने खाली थी। यहंा वो लड़ तो कांग्रेसियों से ही रहे हैं, पर पानी पी पीकर कोस रहे हैं विपक्ष को। घर की फूट तो संभाली नहीं गई, फिर बिल्ली को गालियां देने और कोसने से क्या फायदा? आप मजे लेने देंगे तो बाहर वाले तो मजे लेगें ही ना। आप बिकने को तैयार हैं तो खरीदने वाले भी मिल ही जाते हैं। दूसरों को क्या दोष देना।
क्या आपको अपने कांग्रेसी विधायकों पर इतना भी विश्वास नहीं कि, आप कह सको कि, इनमें से कोई बिकाऊ नहीं है ? अगर वे इस लायक नहीं है तो बाड़ाबंदी से भी क्या होगा? आज नहीं तो कल फूट लेंगे। अगर बिकाऊ नहीं है तो बाड़ाबंदी की जरूरत क्या थी? विचारे, मुस्कुराते हैं, पर कब शह, मात बन जाये, इसी डर से एक दूसरे को पकड़कर बैठे हैं। अब यह भी रहस्य है कि कौन किसको पकड़ कर बैठा है। गहलोत जी विधायकों को पकड़ कर बैठे हैं या विधायक ही गहलोत जी को मल्लाह बनाकर उन्हें घेरे हैं ताकि सरकार की नाव न डूब जाये वरना मलाई के दिन ही चले जायेंगे। सुना है कि जब जहाज डूबता है तो चूहे सबसे पहले भागते हें। यहां सब यह सोच इसलिए इक_े बैठे हैं कि जब चूहों को भागने का मौका ही नही मिलेगा तो जहाज डूबेगा कैसे? सरकार होते हुए भी राजस्थान की प्रजा अनाथों की तरह पड़ी है क्योंकि इसके नाथ ही अपने आपको अनाथ हो जाने के डर से बचने को हाथ पैर मार रहे हैं।
इधर श्रीनाथ जी का मंदिर ही बंद है वरना वहां जा आते उनकी शरण में। मलाई की कटोरी बीच बाजार में रखी है और वे बिल्ली की नैतिक परीक्षा में लगे हैं कि वे वो इसमें मुंह न मारे। अब यह बिल्ली के धैर्य की परीक्षा भी है कि वह कब तक अपना मुंह दूर रख पाती है। मलाई गर्म रखी जा रही है, इससे एक तरफ खुशबू बहुत तेजी से फैल रही है, दूसरी तरफ बिल्ली को मुंह जल जाने का डर भी सता रहा है, अत: दूर से बैठी देख रही है कि कब अवसर मिले। उसका तो कलेजा भी मुंह को आ रहा है कि सर्वप्रिय मलाई सामने है, मगर मन मसोसकर बैठना पड़ रहा है क्योंकि खाने की स्थिति भी नहीं बन पा रही। वह तो यह भी चाहती है कि बंदर खुद बताये कि, मलाई कितनी गर्म है? मलाई के दोनों तरफ बंदर बैठे हैं, एक खाऊं खाऊं करते भी हिम्मत नहीं कर पा रहा पर दूसरा बिल्ली की शरण में ही बैठा है। बिल्ली की यह भी समझ में नहीं आ रहा कि शरण आये हुए कि मलाई कैसे खाये, वो तो तभी नसीब होगी जब वो खुद कहे कि आओ, मलाई साथ साथ खाते हैं और बंदर ने बिल्ली बनने से इंकार कर दिया तो क्या होगा, इसलिए बेहतर है कि चुपचाप गालियां, ताने सब झेल लो, ईश्वरेच्छा होगी तो मलाई किसी दिन मिल ही जायेगी। राम राम।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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