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खाद्य प्रसंस्करण उद्योगों में अपार संभावनाएं: डॉ. राठौड़
उदयपुर। महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर के संघटक प्रौद्योगिकी एवं अभियांत्रिकी महाविद्यालय के प्रसंस्करण एवं खाद्य अभियांत्रिकी विभाग में प्रो. अजय कुमार शर्मा की अध्यक्षता में 26 जून, 2020 को ‘खाद्य प्रसंस्करण: संभावनाए एवं अवसरÓ विषय पर एक दिवसीय ऑनलाइन वेबीनार का आयोजन किया गया जिसमें 250 से अधिक प्रतिभागियों ने भाग लिया।
वेबीनार के मुख्य अतिथि डॉ. एन. एस. राठौड, कुलपति, महाराणा प्रताप कृषि एवं प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय, उदयपुर, मुख्य वक्ता डॉ. आर. के. गुप्ता, निदेशक, महात्मा गांधी ग्रामीण औद्योगिकीकरण संस्थान, वर्धा तथा डॉ. सुनील कुमार झा, प्रोफेसर, भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान, नई दिल्ली थे।
कुलपति डॉ. एन. एस. राठौड़ ने अपने उद्बोधन में बताया कि खाद्य प्रसंस्करण क्षेत्र में अनेक संभावनाएं हैं क्योंकि यह कृषि और उद्योगों के बीच की कड़ी है, जो अर्थव्यवस्था के दो आधार स्तम्भ हैं। उन्होंने बताया कि खाद्य उद्योगों में विभिन्न इकाई अभिक्रियाएं जैसे- धुलाई, कटाई, सुखाई, पैकिंग आदि का समावेश होता है तथा इस प्रसंस्करण में 19 उपक्षेत्र हमारे देश में उपलब्ध हैं। मुख्य वक्ता डॉ. आर. के. गुप्ता ने बताया कि खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को उत्पादन वाले क्षेत्रों के समीप लगाने से न केवल कटाई उपरांत हानि को कम किया जा सकता हैं अपितु किसानों को भी उनके उत्पाद का अच्छा मूल्य मिल सकता हैं।
उन्होंने अपने उद्बोधन में कहा कि वर्तमान में लघु एवं महिलाओं द्वारा संचालित प्राथमिक, माध्यमिक तथा फोर्टिफाइड खाद्यान्नों के मूल्य संवर्धन तकनीकी को लोकप्रिय बनाना चाहिए। साथ ही कृषि प्रसंस्करण आधारित तकनीकियों को उन्नत करके ग्रामीण तथा पारंपरिक लघु उद्योगों के स्तर पर विकसित करने हेतु राष्ट्रीय योजना बनाई जानी चाहिए तथा उद्यमों को खाद्य प्रसंस्करण तथा अन्य ग्रामीण तकनीकी में कौशल विकास हेतु कार्यक्रमों को आयोजित किया जाना चाहिए।
दूसरे विशेषज्ञ डॉ. सुनील कुमार झा ने बताया कि वर्तमान में हमारे देश में 2 प्रतिशत उत्पादन का प्रसंस्करण तथा 10 प्रतिशत मूल्य संवर्धन होता है, जो कि विकसित देशों कि तुलना मे काफी कम है। मानव संसाधन का कम कीमत पर उपलब्ध होना, कच्चे माल का प्रसंस्करण हेतु उपलब्धता, विशाल घरेलू बाजार, प्रसंस्करित खाद्यों के आयात तथा रोजगार बढ़ोतरी की इस क्षेत्र में काफी संभावनाए हैं। उन्होंने बताया कि किस प्रकार खाद्य उत्पादों से आय प्राप्ति कर कटाई उपरांत हानि को कम किया जा सकता है, जिससे शहरी क्षेत्रों में श्रमिकों का पलायन रोका जा सकता है। उन्होंने बताया कि वर्तमान में स्थानीय खाद्य उत्पादों को प्रसंस्करण करने के लिए उद्यमियों को प्रशिक्षित किया जाना चाहिए, जिससे उत्पादों को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पहचान मिल सके, उन्होंने सूचित किया कि बिहार के मिथिलांचल क्षेत्र में उत्पादित मखाने की आज अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मांग बनी हुई है।
कार्यक्रम के संयोजक डॉ. एन. के. जैन, डॉ. जी. पी. शर्मा, डॉ. एस. के. जैन, डॉ. पी. एस. चंपावत, डॉ नवीन चैधरी, डॉ. निकिता वधावन, डॉ. दीपक राजपुरोहित, डॉ. विजय कुमार चाहर, डॉ. सागर, इंजी. दीक्षा तथा अभिनय दीक्षित ने वक्ताओं तथा प्रतिभागियों का वेबिनार के सफल आयोजन के लिए आभार व्यक्त किया।