मेरा मजहब है सत्ता, कौन काटेगा पत्ता?

पायलट रूपी दूध को गहलोत रूपी दूध में मिलाये जाने पर भी बात नहीं बनी तो आलाकमान ने सोचा इसका दही जमाते हैं। पर हर दूध की किस्मत में ढंग से जमना भी नहीं लिखा होता है। यहां भी यही हुआ, दूध जमने से पहले ही खट्टा होना प्रारंभ हो गया। सवाल यह भी है कि दूध-दूध भी आखिर एक दूसरे में मिल क्यों नहीं पाये तो असल बात यह थी कि एक का दूध नकली था। किसका, यह बताने की आवश्यकता भी नहीं।
खैर छोड़ो, जब भ्रष्टाचार, अनाचार, कदाचार व अत्याचार की गंगोत्री बह रही हो तो कौन चपेटे में आ जाये, नहीं कहा जा सकता। इधर वैक्सीन की हाय-हाय मचा रखी है, उधर धड़ाधड उसे फेंका जा रहा है, जमीन में गाड़ा जा रहा है और मूंछे ऐंठकर यह भी कहा जा रहा है कि 10 प्रति. वेस्टेज का तो हमारा अधिकार है और अभी तो 2 प्रति. ही साबित हुआ है। वाह, खिलाड़ी जी आपके मोहरे तो आपसे भी तेज निकले। हाथों से कुश्ती लड़ते, लड़ते लंगडी ही दे मारी। अब जनता तो बिचारी ढंग से खड़ी भी नहीं हो पा रही कोरोना से लड़ते-लड़ते और आपने उसी पर डाल दिया कि वैक्सीन लगवाने वाले ही नहीं आये तो खराब होनी ही थी।
अब आपके घर पर खीर बनी हो और खाने वाले को पता ही नहीं हो तो खीर ढोलने के काम में आती है क्या? कम से कम खीर खाने वालों को तो नोत कर के तो बनाओ। इस कोविड के दौर में तो हमने बहुत से नाटक देखे। कभी ऑक्सीजन की कमी के, कभी रेमडेसिविर और अन्य दवाइयों की कमी के, बेड्स और वेंटीलेटरर्स की कमी के। आपको किसने पहले इंतजाम करने के लिए मना किया था। राजस्थान के मालिक तो आप ही हो न। क्या अपने घर वालों की रक्षा के लिये कोई खुद जिम्मेदारी न लेकर पड़ोस पर डाल देता है क्या? आपने तो हद ही कर दी, जिम्मेदारी संभाली नहीं और गैर जिम्मेदारी का बयान भी दे दिया।
वाह! मजा आ गया। अभी वोट तो लेने ही नहीं है। जब वोट लेने होंगे कुछ हाथ जोड़ लेंगे और बाकी तो आपने एक वोट बैंक जमात तैयार कर रही रखी है अत: आप समझने लगे हो कि आप अजेय है। हां, आपका भाग्य भी ऐसा ही है कि विपक्षी दल भी बेहोश पड़ा है और आपके सारे काले धौले कारनामों पर उस बेचारे की नजर भी नहीं पड़ रही। न उसे यह समझ आ रहा है कि सियासत कैसे करनी है न उसे जनता की सेवा की परवाह है कि चलो कोई काम नहीं तो कम स कम जनता की सेवा में ही लग जावें। पर उन्हें भी लगता है बयान बाजी की बहादुरी से ही जनता खुश हो जाती है, तो काम क्यों करना है?
गरीब जनता तो हमेशा अपनी मौत मरती ही आई है और लोग तो अव्यवस्था के नाम पर चिल्लाते रहते हैं, यह कौन सी नई बात है। कुछ दिन बाद सब कुछ शांत हो ही जाता है, लोग भूल जाते हैं। आपका तो मजहब है सत्ता, आपको लगता भी है कि कौन काटेगा पत्ता? मधुमक्खियां हमने ही पाली है, तो हमारा ही हुआ न शहद का छत्ता।
बहुत अच्छा लगा यह जान के कि, आपके राज में कई लोगों को कमाने के अच्छे मौके मिले, कम से कम वे तो गुण ही गायेंगे। पुलिस वालों को तो लगा रखा था मास्क न पहनने या बिना बात घर से बाहर निकलने वालों को पकडऩे व चालान बनाने के लिए तो वे उनको कैसे पकडेंग़े जो मिलावट कर रहे हैं, रिश्वत खा रहे हंै, बलात्कार कर रहे हैं, दवाईयों की कालाबाजारी कर रहे हंै, वैक्सीन की बरबादी कर रहे हंै।
पर आपकी दिक्कत समझ में आती है, ईमानदार आपको निहाल करते नहीं, जिसे बेईमानी करने का मौका देंगे, वह तो जी जान लगा देगा आपके लिये जब वोट देने का नंबर आयेगा। हम तो आपसे एक ही गुजारिश करेंगे अब ये पायलट वाला कांड निपटा ही दीजिये नहीं तो भाजपा तो आपकी कुर्सी हिलाये या न हिला पाये, आपके घर की कलह ही ले डूबेगी।
पानी गर्म होकर खदबदाने लगा है, आप को आवाज देकर जगाने लगा है। तुम जिन चिरागों को बुझाना चाहते हो, उनमें से धुंआ फिर से आने लगा है। तुम तो गुस्सें में जनता को ही जमींदोज करने में लगे हो, जनता को भी अब नजर आने लगा है। एक हाथ में कटोरा रखते हो, दूसरे में कुल्हाड़ी, भीख अच्छी मिले तो ठीक है, वरना दूसरा हाथ सिर्फ अपने ही पैरों पर कुल्हाड़ी चलाने लगा है।

इन्द्र भंसाली ‘अमरÓ
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