फटे दूध की लस्सी

 फटे दूध की लस्सी

इन्द्र भंसाली ‘अमरÓ
जयपुर, मो.नं. 8949508217

भगवान दो दिलजलों को ऐसे ही मिलाये जैसे गहलोत और पाइलट को मिलाया है। इस बीच गहलोत पाइलट मंत्र पढ़ते रहे और पाइलट गहलोत मंत्र पढ़ते रहे। दोनों ब्रेक में भारतीय जनता पार्टी के पास चले जाते थे। गहलोत जी उन्हें कोसते हुए और पाइलट जी उन्हें धन्यवाद देने के लिए। बीजेपी मुस्कुराती रही और दोनों की लुहारी लड़ाई का आनंद तब तक उठाती रही जब तक कि प्रियंका गांधी, राहुल गांधी और सोनिया गांधी ने लोहे को सोने में नहीं बदल दिया यानि कि वह लड़ाई सुनारी लड़ाई में तब्दील नहीं हो गई।
दोनों खीसें खपोचते मुस्कुरा रहे हैं। एक बिना मूंछ के ही उसे उमेठ कर उठाने की कोशिश में है तो दूसरा उस मूंछ को काटने की कोशिश करके आया है, जो वहां थी ही नहीं। इस तरह दोनों के होठ सामने आ गये, जबरदस्ती की मुस्कुराहट लिए क्योंकि जनता नामक डॉक्टर जो इन लोगों का समय समय पर इलाज करती है, वह समझती रहे कि उसे बेवकूफ बना दिया गया है और दोनों ने ही राजनैतिक छुट्टियों में उस समय ऐश कर लिये, जब डॉक्टर की जेब खाली थी।
दोनों को पता है कि डॉक्टर की जेब तो खाली ही रहनी है क्योंकि उन्हें कोविड-19 का भय बताकर घर पर रहने पर ही मजबूर रखना है। जो थोड़ा बहुत निकलने की कोशिश करते नजर आते हैं उनके लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट तो बंद कर ही रखा है ऊपर से पैट्रोल महंगा कर दिया। साला करेला और नीम चढ़ा। मना ले त्यौहार अगस्त के महीने में।
जब खुद के लिए बिना रोकटोक सारी सुविधायें हैं मुफ्त में हासिल, दीन दुनिया से रहे हम क्यों भला गाफिल। इधर नेताओं से तो कोरोना भी डरता है, क्या कर लेगा वह इतनी सारी सुविधाओं के बीच में और फिर भी टपक ही गया तो थोड़े दिन और सही आराम करने के, पर भगवान ने भी इन्हीं कर्णधारों की ही सुनी, किसी को कुछ नहीं हुआ, कोरोना यहां से दुम दबा के भाग निकला। समर्थों के पास असमर्थों का क्या काम ?
अब तो सचमुच ही लगता है कि ये बीमारी जानबूझकर ही लादी जा रही है ताकि जनता इनसे कुछ महीने जूझती रहे और नेतागण अपने सियासी काम आराम से पूरे कर लें। सारे फोन, सोशल मीडिया, सारे अखबार वालों के पास एक ही डर, एक ही काम, एक ही बात बस कोरोना और वह आप से दूर रहे इसकी हिदायतें।
सबसे महत्वपूर्ण बात जो है, वह है भयावह आंकड़े बाजी, ऊपर से युधिष्ठरी सच की ‘अश्वत्थामा हत: नरों वा कुंजरोÓ की तर्ज में ‘ठीक हुएÓ के नंबर भी नीचे चुपचाप लिख दिये जाते हैं। मोटे अक्षरों में लिखे रोज के बढऩे वाले मरीज और कुल मौतें इतनी डरावने तरीके से पेश की जा रही है कि लगता है इससे पहले लोग मरते ही नहीं थे। जनता का ध्यान इधर, नेताओं का ध्यान उधर। मजे की बात है कि प्रचारित यह है कि सरकार कहीं भी है, काम कर रही है ताकि जनता का भ्रम बना रहे।
नेताओं को पता नहीं शायद कि ये जनता है, वो सब देखती भी है और समझती भी है। ऊपर से ये नेता तबादलों को काम समझते हैं जैसे उलट पुलट करके ये प्रदेश पर बहुत बड़ा अहसान कर रहे हैं। क्यों नहीं ये काम उन सरकारी विभागों पर स्वयं ही छोड़ दिये जाते फिर चाहे वे अध्यापकों के तबादले हों या आर.ए.एस. अफसरों के।
चिंता तो बस ये है कि अपने आदमी ठीक ठिकाने पर पहुंच जाये और बाकी लोग उन ठिकानों पर जहां उन्हें टिकाना होता है। कभी कभी तो जुमला भी सुना है कि साले को ऐसी जगह फैंका है, जिन्दगी भर याद रखेगा। अब ये जोर से तो बोल नहीं सकते, अत: खुद को ही बोल लेते हैं। खुद से कही, खुद ने ही जानी, खुद ने ही सुनी, खुद की जुबानी। कभी कभी चमचों को भी चम्मच की आवाज से पता पड़ जाता है कि भगोनी बोल रही है। अब सुनना, समझना तो खुद को ही पड़ता है भला।
मगर चलो अच्छा है, दो बगुलों का जोड़ा मिल गया है आगे क्या क्या गुल खिलते हैं, यह देखना है। फिलहाल तो यह फटे दूध की लस्सी है, देखते हैं कितना स्वाद आता है ? अब तक की पिक्चर का तो दी एण्ड कर ही दिया। भाग दो सीक्वेल भी बनाना ही है, देखिये नई स्क्रिप्ट कब लिखी जाती है, कब पढ़ी जाती है और फाइनल की जाती है ताकि एक बार फिर सैर सपाटा, जोर झपाटा, जनता बस इंतजार करे और कोरोना को भूलकर इन्हें प्यार करे।
राम, राम।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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