अद्भुत थे डॉक्टर दत्ता, गरीबों के भगवान थे

 अद्भुत थे डॉक्टर दत्ता, गरीबों के भगवान थे

अजमेर, अजय सिंह।
डॉ. दत्ता अद्भुत, विलक्षण प्रतिभा के धनी थे। इसके साथ ही वो बहुत ही दयालु और गरीबों के लिए जीवित भगवान के समान थे।
केवल दो उदाहरण से आपको बताउंगा कि वो चिकित्सा और मानवता के लिए कितना बड़ा वरदान थे।
1. वार्ड की सफाई सुबह 7 बजे से पहले हो जाती है।
2. दूसरा कि, मरीज और उनके रिश्तेदारों के जूते चप्पल वार्ड के बाहर ही उतारे जाते हैं। इसके साथ ही मरीजों को पहनने के लिए वार्ड से ही चप्पल दी जाती है।
3. मरीज के साथ केवल एक ही रिश्तेदार रह सकता है।
4. मरीज और आवश्यक होने पर उसके परिजन के लिए दोनों समय का खाना और नाश्ता भी उपलब्ध कराया जाता है।
5. वार्ड में साउंड सिस्टम लगा दिया गया है। सुबह-सुबह भजन और फिर दिन में कुछ मनोरंजन के लिए गीत चलाएं जाते हैं।
डॉक्टर दत्ता के प्रयासों से न्यूरो का वार्ड किसी मंहगे प्राइवेट अस्पताल के निजी वार्ड से कम नहीं लग रहा था। जेएलएन अस्पताल में उनके जैसा कोई और वार्ड नहीं था। यही खास विशेषता से उनका जीवन भरा रहा।
डॉ. दत्ता थे चिकित्सा विज्ञान के लिए वरदान
डॉ दत्ता के हाथों में कुुदरती खजाना भरा था। वो न्यूरो सर्जरी की बहुत बारीक जानकारी रखते थे। वो मरीज को देखकर ही बता देते थे कि मरीज बचेगा या नहीं। एक बड़े उदाहरण से समझिए कि हम सब के लिए डॉ. दत्ता कुदरत का कितना बड़ा वरदान थे।
जगह का नाम तो याद नहीं आ रहा। अजमेर या फिर शायद नागौर में एक गांव के एक खेत पर अचानक एक व्यक्ति से बंदूक चल गई। गोली उसके सिर में घुसी। उसे जेएलएन लाया गया।
डॉ. दत्ता सीधे ऑपरेशन थियेटर में पहुंचे और तुरंत ऑपरेशन शुरू कर दिया। गोली का खोल उस व्यक्ति के सिर में आधे में पहुंचकर फंस गया था। डॉक्टर दत्ता ने उस व्यक्ति का पूरा सिर खोल दिया। गोली के खोल को निकाला और सिर फिर से स्टिच कर दिया। 12 घंटे के बाद वह व्यक्ति ना सिर्फ अपने पलंग पर उठकर बैठ गया बल्कि कुछ ही देर बाद डॉक्टर दत्ता ने उसे वार्ड में चला भी दिया।
उस समय खुद डॉक्टर दत्ता का कहना था कि यह उनके जीवन का एक बड़ा ही चेलेंजिंग ऑपरेशन था। जिसमें एक भी बारीक गलती से उस व्यक्ति की जान जा सकती थी।
दूसरे उदाहरण से समझिए: कैसे डॉक्टर दत्ता गरीबों के लिए भगवान थे
डॉक्टर दत्ता को दो चीजों से नफरत सी थी। एक तो कोई पैसे वाला उन्हें पैसा दिखा देता था, तो वो नाराज हो जाते थे। उस मरीज को ही नहीं देखते थे। कहते थे – पैसा है तो इलाज कराने प्राइवेट अस्पताल जाओ। दूसरा अगर कोई उनके पास अप्रोच लेकर पहुंच जाता था, तो भी उसे नहीं देखते थे।
इस स्वभाव से अगल हटकर भी उनका जीवन एक विराट अस्तित्व को जी रहा था। वो हर गरीब की मदद के लिए तत्पर रहते थे।
मेडिकल स्टोर वालों से गरीबों को महंगी दवाईयां फ्री में दिला देते थे। देखने की फीस नहीं लेते थे। यहां तक कि, कईयों को तो पूरा इलाज के बाद उन्हें वापस घर पहुंचाने के लिए वाहन और कुछ धन भी उपलब्ध कराते थे।
केंसर से मौत
डॉक्टर दत्ता लंबे समय से केंसर से जूझ रहे थे। वो बहुत तकलीफ में रहते थे, उसके बावजूद, नियमित रूप मरीजों को देखना, उनका उपचार और ऑपरेशन करना। उनकी दिनचर्या थी।
डॉक्टर दत्ता वाकई अदभुत थे। वो भगवान तो नहीं लेकिन इंसान के रूप में किसी भगवान से कम भी नहीं थे। उन्होंने अपने जीवन में मस्तिष्क के कई जटिल ऑपरेशन करके सैंकड़ों लोगों की जिंदगियां बचाई। आज वो हमें छोड़कर गए हैं तो मन वाकई उदासी से भर गया था।
मानवता की सेवा में लगा कोई जिंदादिल इंसान जब जाता है तो मन का दुखी होना स्वाभाविक होता है। वो भी डॉक्टर दत्ता जैसी शख्सियत। जो सैंकड़ों सालों में कभी-कभी कभार ही आती है।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

Related post