डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
कोरोना खत्म तो नहीं हुआ ?
डॉ. कुसुमलता टेलर,
असिस्टेंट प्रोफेसर, एमवीएससी, उदयपुर
लवीना 4 साल की हो गई थी और दूसरा साल था उसके स्कूल का। आरंभ में तो वह कुछ दिनों स्कूल जाते समय रोती थी पर दादी के समझाने पर वह हंसती- खेलती स्कूल जाने लगी। मार्च माह आने वाला है और साथ ही लवीना की स्कूल की परीक्षाएं सिर पर थी, लवीना की मम्मी, सुरभि,चिंतित थी कि वह क्या लिखेगी? इसलिए वह अब से रोजाना उसे पढ़ाएगी। पर अचानक कोरोना महामारी ने अपना आतंक दिखाया। देशभर में लॉकडाउन हो गया। इसलिए विद्यालय, महाविद्यालय तो क्या सब कुछ बंद हो गया।
अब रोज की तरह सुरभि, लवीना को सुबह जल्दी नहीं उठाती। स्कूल तो जाना नहीं था, घर से बाहर भी नहीं जाना था तो बच्चे करें क्या? इस कारण लवीना को देर तक सोने को मिलता था। लॉकडाउन से जीवन में काफी कुछ बदलाव आने लगे, अत: लवीना के मन में कई प्रश्न उठने लगे अत: वह अपने दादा – दादी व मम्मी – पापा से कई प्रश्न करने लगी जैसे कोरोना क्या है? किसको होता है? कैसे ठीक होता है? इसमें क्या ध्यान रखना चाहिए? कोरोना के समय में स्कूल क्यों बंद कर दिए गए और न जाने क्या – क्या प्रश्न किया करती, दिन भर लवीना के प्रश्न और घर वालों के उत्तर।
दिन बीतते जा रहे थे। लॉकडाउन तो समाप्त हो गया। लवीना के पापा अनुज भी ऑफिस जाने लगे पर सरस्वती मंदिरों पर अभी भी ताले थे। लवीना घर पर ही टी वी देखती, दादा- दादी के साथ खेलती, ऑनलाइन कक्षाएं पढऩा, खूब मस्ती करना, खाना- पीना और सो जाना यही दिनचर्या बन गई। समय मजे से बीत रहा था, घर में रहकर लवीना को इतना अच्छा लगने लगा कि वह यह सोचने लगी कि जब कभी कोरोना खत्म हो जाएगा तो पुन: स्कूल जाना पड़ेगा। पुन: पढऩा, लिखना और वही दिनचर्या। इसलिए रात को सोने के बाद सुबह उठते ही सबसे पहले मम्मी से एक ही प्रश्न करती, मम्मी! कोरोना खत्म तो नहीं हुआ?