सफलता की सीढ़ी… संतुलन का सिद्धांत

 सफलता  की  सीढ़ी… संतुलन का सिद्धांत

व्यक्ति के जीवन की धुरी उसका जीवन संतुलन है। व्यक्ति आरंभ से ही अपने जीवन में संतुलन को खोजना शुरू कर देता है। शिशुकाल में पैरों पर चलने का संतुलन हो या साइकिल पर संतुलन बना कर चलाना हो, वयस्क होकर ऑफिस और परिवार में संतुलन, जीवन में इच्छा और आवश्यकता में संतुलन, क्या है और क्या पाना है का संतुलन। भूतकाल, वर्तमान और भविष्य का संतुलन, भावनाओं तथा व्यवहारिकता का संतुलन। व्यक्ति जीवनपर्यंत बाहरी परिस्थितियों और अपने विचारों में संतुलन बनाता नहीं थकता। परिस्थितियां, काल समय व्यक्ति के मन में विचार उत्पन्न करते हैं जो भविष्य में व्यक्ति के कर्म बनते हैं।
संतुलन का सिद्धांत स्पष्ट है, ‘अस्वीकार्य योग्य विचारों के मध्य स्थायित्व को दर्शाने वाली मनोदशा और स्थिति संतुलन कहलाती है।Ó सरल अर्थों में व्यक्ति को विपरीत परिस्थितियों में स्थिर मानसिकता से कार्य को पूर्ण करना चाहिए क्योंकि सफलता के मार्ग में विचलन की कोई क्षमा नहीं होती। वह व्यक्ति उन्नति और सफलता पाता है जो विपरीत परिस्थितियों में अपने विचारों, भावनाओं, मन मस्तिष्क पर संतुलन प्राप्त करने में सफल होता है जो व्यक्ति अपने आपको संतुलित कर ऐसी परिस्थितियों का सामना कर अपने कर्म सिद्ध करता है वह जीवन रथ पर सवार होकर जीवन को संघर्ष में झोंककर अवश्य ही अपना लक्ष्य प्राप्त करता है।
व्यक्ति विचारों, भावनाओं, स्मृतियों व कर्म के कई उतार-चढ़ाव से जीवन में गुजरकर जीवनपर्यन्त उन्हें ढोता है। सशक्त व्यक्तित्व की पहचान विभिन्न भावनाओं को ग्रहण करने और त्यागने में होती है तभी वह सफलता के चरम तक पहुंचता है। अनावश्यक भाव, विचार, स्मृति व्यक्ति के मन और मस्तिष्क को असंतुलित करते हैं जिसके रहते व्यक्ति विचलित और व्याकुल रहता है। सफल व्यक्तित्व की पहचान संतुलित मस्तिष्क द्वारा लिए गए निर्णय से भी होती है। संतुलन का सिद्धांत व्यक्ति को जीवन पथ पर रूकावटों को अनदेखा कर आगे बढऩे की प्रज्ञा देता है।
संतुलन का सिद्धांत व्यक्ति को ‘अतिÓ से सदैव रोकता है अर्थात किसी भी वस्तु की अति कभी शुभ फल नहीं देती। यदि व्यक्ति के विचार अमिश्रित हैं व नेक हैं जो उसे प्रगति के पथ पर आगे बढ़ा सकते हैं परन्तु व्यक्ति अपने विचारों में ही मगन रहे और क्रियान्वयन कर कार्य में परिवर्तित न कर पाए तो यह संतुलन के सिद्धांत के विरूद्ध है। विचारों का कर्म से मिलन ही संतुलित जीवन देता है और कार्य सिद्धि का मार्ग प्रशस्त करता है। व्यक्ति के जीवन में संतुलन का महत्व केवल सफलता अर्जित करने तक ही सीमित नहीं है अपितु जीवन के प्रत्येक पहलू को छूता है। कई लोग इस सोच के साथ कार्य को तवज्जो देते हैं कि, वह सब कुछ अपने आप और अपने परिवार के लिए कर रहे हैं। फलस्वरूप वह अपने आपको कार्य तक सीमित कर लेते हैं। न खाने का समय निश्चित, न घर जाने का, न परिवार के साथ समय बिताने का समय और ना ही खुद के लिए वक्त। ऐसी जीवनशैली असंतुलित मनोवृति को दर्शाती है और जो जीवन को खोखला कर देती है। आजकल की Life style malfunctioning रोग इसी असंतुलन की देन है। यदि आप विद्यार्थी हैं तो आपको अध्ययन और व्यायाम में संतुलन बनाना आवश्यक है। विशेषकर जो प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी कर रहे हैं। अपने टाइम टेबल में एक घंटा खेल या वॉक को अवश्य दें। यह न सिर्फ स्वस्थ रखेगा बल्कि यह आपको अपने आप से भी जोड़ेगा जो नीरस दिनचर्या में परिवर्तन लाता है। वॉक पर जाते हुए अपने मन और मस्तिष्क को कार्य व पढ़ाई से दूर रखें और केवल आसपास की वस्तुओं पर जिज्ञासु होकर गौर करें। अवश्य ही आप अपने कार्य या पढ़ाई में नवीन रणनीति या युक्तियां ढूंढ़ निकालेंगे जो आपको और परिष्कृत बनाएगी।
सफलता की सीढ़ी कहना चाहती है कि, जीवन के उतार-चढ़ाव तो आते रहेंगे परन्तु व्यक्ति परिस्थितियों पर काबू अपने कर्मों और विचारों से कर सकता है। जीवन संतुलन का नाम है। तात्पर्य यह है कि, व्यक्ति को अपने जीवन में संतुलन बनाए रखने के लिए समय परिस्थिति के अनुरूप अपने आप में सकारात्मक बदलाव की आवश्यकता है क्योंकि सफलता के सिद्धांत में वह शक्ति है जो व्यक्ति को उत्कृष्ट और प्रगतिशील एक ही समय बनाती है।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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