सफलता की सीढ़ी… स्वयं के प्रति कृतज्ञ होना देगा एक नई अनुभूति

 सफलता  की  सीढ़ी… स्वयं के प्रति कृतज्ञ होना देगा एक नई अनुभूति

एक कृतज्ञ हृदय आपके जीवन में चमत्कार को आकर्षित करता है। आज के समय में व्यक्ति खुद को छोड़ सभी से कृतज्ञता दिखाता है, न जाने क्यों खुद को छोड़ देता है। सुबह उठ कर भगवान को धूप दे कर धन्यवाद करता है। ऑफिस के गार्ड को दरवाजा खोलने पर धन्यवाद करता है, बॉस को मीटिंग और सहकर्मियों को मदद के बाद धन्यवाद करता है। जीवन की इस कशमकश में सदैव खुद को भूल जाता है। कृतज्ञता आज बल्कि अभी में जीने का नाम है। यदि हम एक क्षण ठहर कर इस भाग दौड़ की जिंदगी में अपने आप को साधुवाद देते हैं तो वह कृतज्ञता का ही भाग है। कृतज्ञता अपने आप को सराहने व अपनाने का नाम है। यदि हम आज की परिस्थिति स्वीकार करते हैं तो हम जीवन के सुखद स्वरूप का अनुभव करते हैं। फलस्वरूप जीवन में अवांछनीय घटना घटने पर हम विचलित नहीं होते अपितु कृतज्ञता हमें सकारात्मक दृष्टिकोण का बोध कराती है जो हमें बतलाती है कि बहुत कुछ और है जो जीवन में गलत हो सकता था, बहुत कुछ है जो जीवन में सही हो रहा है जो व्यक्ति के विचलित मन को कुछ क्षण शांति की अनुभूति कराता है ऐसा मन जो दूरदृष्टि के सृजन में सहयोग करेगा।
व्यक्ति के जीवन का उद्देश्य सदैव प्रसन्न रहने का होना चाहिए। जिसकी विपरीत मानव आत्मसंतुष्टि के लिए व्यक्ति भौतिक जीवन एवं विचारधारा का निर्वहन करने लगा है और इस तथ्य को भूल गया है कि जीवन में आत्म संतुष्टि छोटी छोटी खुशियों से प्राप्त की जा सकती है और इन खुशियों की अनुभूति व्यक्ति के कृतज्ञ भाव से होती है। आप जो भी हैं, आज जिस भी स्थिति में हैं उसके लिए कृतज्ञ बनें तो अवश्य ही आप अपने इस सफर के लिए भी आभारी होंगे जो आपको यहां तक लाया है। आज के युग में व्यक्ति की दिनचर्या किसी जंग से कम नहीं है। यद्यपि व्यक्ति की उत्तरजीविता (ह्यह्वह्म्1द्ब1ड्डद्य) उसके भीतर छिपे साहसिक व्यक्तित्व में है, जो कृतज्ञता से ऐसे जीवन को स्वीकार कर आगे बढऩे का हौसला देती है। कृतज्ञता व्यक्ति द्वारा सृष्टि का अभिवादन है जो उसे इस जीवन से प्राप्त हुआ। कृतज्ञता व्यक्ति को वह शक्ति देती है जिससे वह लोगों के माध्यम से, प्रकृति से या परम शक्ति से जुड़ सके और उसके लिए जीवन और सृष्टि के अनंत द्वार खुल जाएं।
सकारात्मक मनोविज्ञान के शोध के अनुसार कृतज्ञता की निरंतरता परमानंद से सशक्त रूप से जुड़ी हुई है अर्थात यदि हम कृतज्ञ भाव की निरंतरता जीवन में लाएंगे तभी हमारा जीवन प्रसन्नता से भरा होगा। कृतज्ञता वह ऊर्जा स्त्रोत है जो व्यक्ति में सकारात्मक मनोभाव, जीवन के सुखद अनुभव, स्वास्थ्य के प्रति सहज अनुभूति प्रदान करती है जो उसे आस पास के माहौल, घटनाओं के बीच सहज महसूस कराने का प्रयास करने में सहयोग करता है।
फलस्वरूप व्यक्ति सकारात्मक सोच और आशावादी रवैये को अपनाता है।
अब प्रश्न यह है कि इसे हम अपने जीवन में विकसित कैसे करें, जिसका सरल सा उत्तर है कि जीवन में खुशी का तात्पर्य सब कुछ पाना नहीं बल्कि अपने पास जो कुछ है उसकी संतुष्टि की मानसिकता को अपना कर जीवन यापन करना है। आप अपनी कृतज्ञता को किसी बड़ी उपलब्धि के लिए नहीं बचायें बल्कि हर छोटी बड़ी उपलब्धि आपकी है तो इसमें भेदभाव कैसा। आप सभी को सराहें क्योंकि ये छोटी छोटी उपलब्धियां आपको संतुष्ट और प्रोत्साहित करती हैं जो जीवन संघर्ष में आपका उत्साह बढ़ाती हैं। आप अपने जीवन के संघर्ष के प्रति कृतज्ञ बनें, उसका स्वागत करें। शायद आप ही हैं जो ऐसा कर सकते हैं, समस्या से लोहा ले सकते हैं इसलिए ये समस्या आपके सामने आ खड़ी हुई है। जब आपकी सोच में ऐसी सकारात्मकता आएगी तब आप निराश व हताश नहीं होंगे और ऐसी कठिनाइयों का डटकर मुकाबला करेंगे। हम अक्सर किसी के द्वारा हमारे लिए किए गए कार्य की सराहना धन्यवाद कर लौटाते हैं, कभी स्वेच्छा से सहयोग कर उसको धन्यवाद लौटाना, उस व्यक्ति से अधिक खुशी आपको महसूस होगी। अंतर्मन में दूसरों के प्रति कृतज्ञ भाव होना ही पर्याप्त नहीं – कृतज्ञता बढ़ती है उसे साझा करने से उसे अभिव्यक्त करने से। कृतज्ञता की परिसीमा कार्य, परिवार, समाज तक सीमित नहीं होनी चाहिए बल्कि आवश्यकता है इसके दायरे को बढ़ाने की, अपनी रुचि को ढूंढऩे, अपने जीवन शगल के रूप में जो गार्डनिंग, पेंटिंग, रिडिंग, समाज सेवा या कुछ और भी हो सकती है। आप इसका दायरा जितना बढ़ाएंगें आप प्रकृति और स्वयं के और करीब आएंगे और कृतज्ञता के बहुआयामों को समझ पाएंगें।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

Related post