सफलता की सीढ़ी… पिता हमारे सबसे बड़े प्रेरणा स्त्रोत

 सफलता  की  सीढ़ी… पिता हमारे सबसे बड़े प्रेरणा स्त्रोत

सफलता की सीढ़ी समय-समय पर अपने अनुभव आपके साथ साझा करती आई है इस कड़ी में आज एक और अनुभव आपके साथ बांटना चाहती है। कुछ मित्र लंबे अंतराल के बाद मिले थे सभी अपने अपने जीवन, कार्यक्षेत्र में ऑफिस में व्यस्त थे, ऑफिस की विभिन्न घटनाएं, अपनी परेशानियों की बातें, कार्यक्षेत्र के अनुभव जैसी बातों की कड़ी जुड़ती गई और उनके जीवन के अनुभव हर पक्ष को छूकर आने लगे, बात इतनी रोचक हो चली कि धीरे-धीरे सभी को उस में रुचि आने लगी सभी अपने अतीत से प्रसन्न एवं वर्तमान से संतुष्ट थे परंतु भविष्य की बात आते ही प्रत्येक के सर पर अनिश्चितता की लकीरें साफ देखी जा सकती थी। बातों ही बातों में व्यथित होकर एक ने अपने मन की बात कह दी, ‘यार! जीवन में कोई इंस्पिरेशन (प्रेरणा स्रोत) नहीं है। कुछ समझ में ही नहीं आ रहा भविष्य में नौकरी, परिवार, समाज में क्या होगा, हमारे क्या दायित्व होंगे? जीवन रुक सा गया है, जीवन का कोई उद्दश्य नजर नहीं आता। काश जीवन का प्रेरणा स्त्रोत मिल जाए।Ó उसके शब्द सीधे मन में उतर गए और झट से मैं आत्ममंथन करने लगा। क्या मुझे भी समझ नहीं आ रहा अब आगे क्या करना है? क्या मेरे जीवन का भी प्रेरणा स्त्रोत नहीं है? ऐसे ही कुछ प्रश्न मेरे मन में उठ आए। तभी किसी की पंक्तियां मेरे मन में उभरने लगी। ‘याद करो उसे जिसने तुम्हें छाया में रखा और खुद को झोंक दिया तपती धूप और दुनिया में, मैंने देखा एक फरिश्ता मेरे पिता के रूप में।Ó मैंने मित्र के कंधे पर हाथ रख कर कहा, क्या तुम आज भी प्रेरणा स्त्रोत ढूंढ़ रहे हो? क्या तुम्हें पिता से बढ़कर किसी प्रेरणा स्त्रोत की आवश्यकता है? पिता वह हैं, जिनकी ओर हम सदैव नजर उठाकर देखते हैं चाहे हम कितने भी बड़े हो जाएं वह एक सफल नेतृत्व की मिसाल है।
जॉन सी मैक्सवेल के अनुसार, ‘लीडर वह है जो राह को जानता है, उस राह पर चलता है और राह दिखाता है।Ó लीडर अधिनायक, नेता ये विभिन्न शब्द हैं एक कुशल नेतृत्व को परिभाषित करने के लिए। नेतृत्व मूल किसी भी परिभाषा से परे है क्योंकि व्यक्ति के शब्द नहीं बोलते उसका कार्य बोलता है और अच्छा लीडर अपने कामों से ही लिडरशिप योग्य बनता है। कुशल नेतृत्व को परिभाषा में बांधना मुश्किल इसलिए भी है कि नेतृत्व व्यक्ति के चरित्र और उसके अंतर्निहित मूल गुणों के उद्घाटन से निर्धारित किया जाता है। नेतृत्व में वह क्षमता है जो सोच को यथार्थ में परिवर्तित कर दे और ऐसी छवि और व्यक्तित्व का उत्कृष्ट उदाहरण पिता के रूप में हमारे सामने है।
हमारी बढ़ती समझ के साथ हमारी आंखें जाने अनजाने अपने आदर्श चरित्र को कहानियों की किताबों में, सिनेमा हॉल की स्क्रीन पर, खेल के मैदान पर, कार्य क्षेत्र में, किसी नेता में अभिनेता के रूप में, विषय विशेषज्ञ में, धर्मगुरु में ढूंढऩे लगती हैं। उनकी सोच विचार कार्यशैली का प्रतिबिंब हमारी दिनचर्या में दिखने लगता है। यह आपके जीवन में प्रेरणा स्त्रोत के रूप में उभर कर आते हैं और इसमें कोई हर्ज भी नहीं परंतु कभी अपने स्वयं जीवन में झांकना, टटोलना थोड़ा गौर करना अवश्य आपके जीवन के प्रेरणा स्रोत, प्रेरक, लीडर के रूप में वह छवि उभर कर आएगी, जो जीवन के प्रथम प्रेरणा सूत्र के रूप में सार्थक प्रतीत होगी, जो जीवन के प्रथम प्रेरणा स्त्रोत हैं जी! ‘पिताÓ। किसी ने क्या खूब कहा है, ‘मेरे पिता ने नहीं बताया जीवन कैसे जीते हैं, उन्होंने जीवन जी कर दिखाया जीवन कैसे जीते हैं।Ó
इस बात से फर्क नहीं पड़ता आपने नेतृत्व या लीडर को कैसे परिभाषित किया है क्योंकि नेतृत्व की परिभाषा व्यक्ति परक होती है परंतु यह बात सत्य है व्यक्ति के जीवन में जीत या हार का निर्धारण कुशल नेतृत्व अवश्य करता है।
एक शिशु जो अपनी सोच समझ से पहले सांस लेता है और फिर उसे संभालने दुलार देने दो हाथ आते हैं जीवन की पहली दृष्टि, पहली अनुभूति, पहली गर्माहट अपने माता-पिता से प्राप्त करते हैं। मैस्लो के अभिप्रेरणा की व्यवहारात्मक विचारधारा (A Hierarchy of Needs) व्यक्ति की आधारभूत आवश्यकताएं हैं-
1) शारीरिक आवश्यकता है- भोजन, जल, गर्मी, छाया व निंद्रा
2) सुरक्षा संबंधी आवश्यकता है- भौतिक सुरक्षा (दुर्घटना आक्रमण, बीमारियां), आर्थिक सुरक्षा (घरखर्च, रोजगार) मनोवैज्ञानिक सुरक्षा (न्याय, सहानुभूति, प्रेरणा, दुलार व मदद)
3) सामाजिक संबद्धता- अपनापन, प्रेम व स्नेह
4) सम्मान तथा पद की आवश्यकताएं- शक्ति, प्रतिष्ठा व आत्मविश्वास
5) आत्मा विकास- यह बनने की चाहे जो एक व्यक्ति बन सकता है अर्थात अपने पोटेंशियल को अधिकतम करके कुछ प्राप्त करना।
आप सोच रहे होंगे मनोविज्ञान के सिद्धांतों से इस विषय का क्या लेना देना परंतु आपको यह समझना आवश्यक है कि इन आवश्यकताओं या अनआवश्यकताओं का प्रभाव व्यक्ति के सकारात्मक या नकारात्मक प्रेरणा पर पड़ता है और हमें जानना आवश्यक है कि पिता हर कदम पर बच्चों और परिवार में इन प्रेरणा का प्राकृतिक संतुलन बनाने के लिए खुद को जीवन चक्र में झोंक देते हैं। हमें दुनिया का कोई डर नहीं सताता, कोई अंधेरा नहीं डराता क्योंकि हमारे पिता हमारे साथ खड़े हैं। हमें किसी बात की चिंता नहीं सताती, भीड़ में गुम जाने का डर कैसा, जब हम उनका हाथ कस कर पकड़ लेते हैं, जीवन की वह पहली चोट याद है जब पिता ने हौसला देकर फिर खड़ा किया था? बचपन में हमारे छोटे-छोटे कार्य खुद कर दिखाकर हमारे प्रेरणा स्त्रोत बने। अपने सहारे सम्भालकर, उंगली पकड़कर चलना सिखाया। परीक्षा में असफलता और उनके डांटने फिर उनका आपको गंभीरता से समझाना, आपकी रुचि को समझना, अपने सबक को साझा करना, बचपन में आपके छोटे-छोटे प्रश्न और पिता के दिए उत्तर याद है ना आपको? आपके भविष्य की चिंता आपके भविष्य के लिए उनकी जी तोड़ मेहनत याद है ना आपको? आपके बड़े होने पर उनका दोस्त बन जाना याद है ना आपको? आपके जीवन के हाल हल्की मजाक में पूछ लेना याद है ना आपको? पिता कब चुपचाप पूरा प्रेम देते हैं हमें जीवन और जीवन की कठिनाइयों से जूझना सिखाते हैं प्रोत्साहित करते हैं दुनिया की बाधा को स्वयं झेलते हैं और हमें अपने आगोश में छुपा लेते हैं, पता ही नहीं चलता। दिन की जद्दोजहद के बाद, थक कर चूर होकर हमारे साथ बैठकर अपने आत्मविश्वास भरी हंसी के पीछे दिन भर की उनकी उलझनों को कैसे छुपा लेते हैं पता ही नहीं चलता था। क्या कोई इससे बेहतर प्रेरणा एवं कुशल नेतृत्व का उदाहरण हो सकता है। मैक्स लूकोड के अनुसार, ‘व्यक्ति जो आर्केस्ट्रा का नेतृत्व करता है उसे अपनी पीठ श्रोता की ओर करनी होती हैÓ, वैसे ही पिता को परिवार से लगाव के साथ अलगाव भी कायम करना पड़ता है तभी वह अपने जीवन एवं परिवार का कुशल नेतृत्व कर पाते हैं।
एक परिवार का कुशल नेतृत्व करते हुए पिता विनम्रता से अपने परिवार सदस्यों भावनाओं को साथ लेकर चलता है और संगठित हो आगे बढऩे की सीख दे कर एक अच्छे नेतृत्व के सभी गुण सिखा देते हैं। पिता सदैव परिवार का विश्वास अपने निर्णयों की पारदर्शिता से पाते हैं। वह अपने विचार, सोच क्रियान्वयन, अपने आप तक सीमित नहीं रखते वह परिस्थितियों व समस्याओं पर चर्चा करते हुए संभावित परिणामों से अवगत कराते हैं। पिता की बातों और सीखों में दूरदर्शिता और उद्देश्य साफ देखे जा सकते हैं। वे अक्सर आने वाले कल को भांप लेते हैं और उन्हें सुलझाने हेतु तत्पर भी रहते हैं। संतान की असफलता में पिता के सहानुभूति और प्रोत्साहन भरे दो शब्द जीवन संघर्ष में पराक्रम की एक नई सोच लाते हैं, आपके जीवन की कठिनाइयों के समाधान के साथ उनकी बातों में एक विश्वास की गहराई होती है जो सदैव प्रोत्साहित करती है। अनुभव व्यक्ति के जीवन से रूबरू कराता है परंतु वर्षों के संघर्षों व उपलब्धियों का संग्रह अनुभव कहलाता है जो व्यक्ति को सफलता तक ले जाता है। पिता के जीवन के अनुभवों में छुपा है हमारी सफलता का रास्ता जो हमें निर्णय लेने की शक्ति प्रदान करता है, योग्य निर्णय शक्ति सफल नेतृत्व का प्रथम स्तंभ है, पिता सदैव एक लंबी और गहरी सोच के बाद किसी निष्कर्ष तक पहुंचते हैं ऐसा निर्णय जो वक्त की कसौटी से गुजर कर निकलता है अनुभव को दर्शाता है और ऐसे अनुभव से लिए निर्णय अचूक होते हैं जिनकी जवाबदेही पिता स्वयं लेते हैं।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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