नंगे भूखे के गले में घोषणाओं की वैजन्तीमाला

 नंगे भूखे के गले में घोषणाओं की वैजन्तीमाला

रामस्वरूप रावतसरे (शाहपुरा, जयपुर)
मो. 98285 32633

हरिया ने अखबार देखा, उसमें बहुत सारी घोषणाएं थी और सरकार इन घोषणाओं को लेकर जश्न मना रही थी। वह ऐसी घोषणाओं को पिछले कई वर्षो से जबसे उसकी समझ बढ़ी है, पढ़ता आ रहा है लेकिन उसके जीवन में इन अखबारी घोषणाओं से आज तक कोई परिवर्तन नहीं आया है। तभी उसके पड़ोसी चितवन ने उसके घर में प्रवेश किया। चितवन आज बहुत खुश नजर आ रहा था। उसने आते ही कहा, ‘देखा हरिया सरकार हमारे लिये कितना कुछ करने जा रही है। अब हमारे भी दिन फिरने वाले हंै।Ó हरिया ने चितवन के सूखे व झुर्रियों से अटे पड़े चेहरे पर जबरदस्ती लाई गई खुशी को देखा।
चितवन ने हरिया के पास बैठते हुए कहा, ‘हरिया तुमने देखा नहीं कितनी बड़ी बड़ी घोषणाएं हुई। अब हमारा राजस्थान सबसे आगे होगा। हमारे यहां भी विकास की गंगा बहेगी।
हरिया ने कहा, ‘चितवन तुम कितने वर्ष के हो! चितवन बोला यही कोई 70 वर्ष के लगभगÓ।
हरिया – ‘इसका मतलब तुमने पिछले पचास वर्षो में सरकारों का आना जाना देखा होगाÓ।
चितवन – ‘हां, क्यों नहींÓ।
हरिया -‘तो तुमने इन सरकारों की लोक लुभावनी घोषणाएं भी पढ़ी, सुनी व देखी भी होगीÓ।
चितवन -‘हां हां क्यों नहींÓ।
हरिया -‘तो फिर उन घोषणाओं के अनुसार अब तक तो बहुत कुछ हो जाना चाहिये था। मैं और तुम पहले भी मजदूरी करते थे, आज भी कर रहे हैं। यह निश्चित है कि आगे भी करते रहेगें और ऐसा भी लगता है कि हमारी आने वाली पीढ़ी भी यही करेगी। चितवन जिन घोषणाओं की तुम बात कर रहे हो, वह हम जैसों के साथ एक बेहूदा मजाक है। ये बड़ी घोषणाएं बड़े लोगों के लिये है। हम आज भी वहीं हैं, जो पचास वर्ष पहले थे। हमारे गांव में पीने के पानी की समस्या है, बच्चों के पढऩे का विद्यालय वर्षो से दो कमरों में चल रहा है। शायद आगे भी ऐसा ही चलेगा। बिजली कितनी आती है, तुम्हें बताने की जरूरत नहीं है। गांव की आबादी के अनुसार चिकित्सा सुविधा की हालत कैसी है, तुम दो दिन पहले देख आये हो। चितवन ये घोषणाएं उस माला के समान है जिसे एक भूखे, नंगे के गले में डाल कर कहा जा रहा है कि, ‘अब तुम इस माला को पहने जश्न मनाओ। देखो, हम तुम्हारे लिये कितना कुछ कर रहे हैं।
चितवन, यदि इन घोषणाओं से, नेताओं के भाषणों से ही कुछ हो जाता तो गांव नहीं उजड़ते, खेत बंजर नहीं होते, बेरोजगारों की भीड़ सड़कों पर लाठियां नहीं खाती। भूरिया किसान को बिना इलाज के मरना नहीं पड़ता। बेवा घापा को भी न्याय मिलता उसे फांसी नहीं खानी पड़ती। हमारे यहां भी रोड़वेज की बस आती। हमें भी स्वच्छ जल मिलता। लेकिन कहां? इतने वर्षो बाद आज भी हमारे जैसे हजारों गांव हैं जो पेयजल की समस्या से जूझ रहे हैं। हर सरकार योजना बनाती है। योजना को लागू करने का भी ढोल पीटा जाता है। हितैषियों को मलाई कौफते खाने को मिलते हंै। हम पचास वर्ष पहले भी इसी स्थिति में थे और आज भी उसी हालत में है। उल्टा पहले हमारा गांव आबाद था। आपसी सौहार्द पूर्ण वातावरण था। इन थोथी घोषणाओं ने, राजनेताओं की चालबाजियों ने ग्रामीणों को निकम्मा बना दिया है। इन घोषणाओं की किस बात को लेकर तुम खुश हो रहे हो। ये घोषणाएं हम जैसे गरीबों के लिये नहीं है। उन घरानों के लिये है। जो सौ से एक सौ बीस की स्पीड से चलते हंै और दिन दूने रात चौगुने की फिराक में रहते हैं।
हरिया कुछ रूक कर बोला-चितवन कभी तुमने किसी घोटाले में किसी नंगे भूखे, गरीब गुरबे का नाम आया हुआ सुना है या कहीं पढ़ा है।
चितवन बोला -नहीं, उसमें गरीब का नाम कैसे हो सकता है?
हरिया- नहीं हो सकता ना। वैसे ही आज तक जो भी योजना बनी है उसमें किस गरीब को अधिक लाभ हुआ है? योजनाओं को गांव की धरती पर क्यों नहीं उतारा जाता? क्यों सभी प्रकार की योजनाओं के लिये पहले से आबाद शहरों को ही चुना जाता है? क्या गांवों को आबाद करने के लिये इनके पास कोई कार्ययोजना नहीं है? ये जो घोषणाएं करते हैं और जो इन घोषणाओं के आधार पर योजनाएं बनाते है वे सभी शहरों में रहते हैं। इसलिये चितवन, वे पहले अपनी सुख सुविधा का ध्यान रखेगें कि तुम्हारा। इन घोषणाओं को लेकर अधिक उत्साहित होने के बजाय आज के काम की सोचो ताकि शाम को रूखा सूखा भोजन मिल सके।
चितवन! सूरज को अपनी आखों से ही देखने में हम जैसों को लाभ है। दूसरे की आखों से देखने में रतोंधी होने का खतरा अधिक है। ये घोषणाएं भी इसी प्रकार है।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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