जिन्दगी मुस्काती है

शुभम जैन ‘परागÓ, उदयपुर (राज.)
मो. 7688962220

खिड़कियों की दरारों से
जब किरणें फर्श पर आती हैं
जिन्दगी मुस्काती है,,

बादलों से निकलकर बूंदे
जब पत्तों से टकराती हैं
जिन्दगी मुस्काती है,,

पेड़ों पर बैठे कोयल
जब मधुर गीत गुनगुनाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

हवाओं में फैली फूलों की सुगंध
जब मंत्रमुग्ध कर जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

वीरान रेगिस्तान में प्यासे को
जब जल की गगरी नजर आती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

तपती दोपहरी में राही को
जब वृक्ष की छांह मिल जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

विचरण से लौटते पशुओं के पदचाप से
जब गोधूलि बेला बन जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

मिट्टी पर पड़ी वर्षा की बूंदों से
जब सौंधी-सौंधी महक आती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

विरह में डूबी प्रेयसी
जब प्रियतम का संदेशा पाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

अपनों से बिछड़कर अकेले में
जब सिसकियों की आवाज आती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

प्रेम में उपजे द्वंद्व में भी
जब पुन: प्रेम की तस्वीर बन जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

एकांत में गुनगुनाते हुए
जब स्वरलहरियां प्रस्फुटित हो जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

परेशान व्यक्ति के कांधे पर
जब अपने की हथेली सहलाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

तपिश में मुरझाए हुए पौधों पर
जब शीतल जल की फुहार पड़ जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

गहन अन्धकार के घमण्ड को
जब टिमटिमाते दिए की लौ हराती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

नकारत्मकता भरे वातावरण में
जब आशा की कोई किरण नजर आती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

मन के विचारों को शब्दों में पनाह से
जब कोई कविता बन जाती है
जिन्दगी मुस्काती है,,

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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