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देसी फ्रिज पर लॉकडाउन की मार
शाहपुरा (जयपुर), विजयपाल सैनी।
सुना है फ्रिज के पानी के मुकाबले मटके के पानी की तासीर ज्यादा ठंडी होती है। गर्मी का मौसम शुरू होते ही देसी फ्रिज यानि मटकों की खरीददारी शुरू हो जाती है। इससे कुम्हारों और इसे बेचने वालों के परिवार का गुजर-बसर होता है, लेकिन इस बार भीषण गर्मी आने के बावजूद मिट्टी के मटके बनाने वाले कुम्हार और विक्रेता परेशान हैं।
कोरोना महामारी के दौरान लगे लॉकडाउन के कारण जयपुर जिले के शाहपुरा समेत आसपास के गांवों व शहरों में गुजर-बसर करने वाले कुम्हारों की मेहनत पर पानी फिरने लगा है। प्रत्येक वर्ष अप्रैल महीने में मिट्टी के मटकों की अच्छी खासी बिक्री शुरू हो जाती थी लेकिन इस वर्ष लॉक डाउन की वजह से बिक्री काफी प्रभावित हुई है।
ऐसे में साल भर से मटके की बिक्री का इंतजार कर रहे कुम्हारों के धंधे पर कोरोना महामारी (कोविड -19) का ग्रहण ही लग गया है। जिससे कुम्हारों की रोजी-रोटी पर संकट के बादल मंडराने लगे है। मटका बनाने वाले हीरालाल कुम्हार, कालूराम व राजू कुम्हार के अनुसार मिट्टी के बर्तन तैयार हैं, बस अब लॉकडाउन खत्म होने का इंतजार कर रहे हैं। यदि फिर से लॉकडाउन की तिथि आगे बढ़ा दी गई तो इस साल व्यापार होना संभव नहीं है।
गर्मी के मौसम में क्षेत्र के कई कुम्हार परिवार मिट्टी के मटके, सुराही, तवा आदि बनाने का काम करते हैं। गर्मी के सीजन के पूर्व मटका और सुराही बनाकर रख लिए जाते थे, इसकी कीमत 30 रुपये से लेकर 550 रुपये तक होती है लेकिन कोरोना महामारी से बचाव के लिए जारी लॉकडाउन के कारण मटका और सुराही की बिक्री पर विराम लग गया है। जिससे परिवार का पेट पालना मुश्किल हो गया है।
लॉकडाउन से धंधा चौपट
कोरोना महामारी में लगे लॉकडाउन के बाद कुम्हारों के मिट्टी से बने बर्तन बिक्री का धंधा पूरी तरह से चौपट हो गया है। गांवों में फेरी लगाने और घर से लोग मटका खरीद कर ले जाते थे। लॉकडाउन की वजह से बाजारों में ग्राहक नही आ पा रहे हैं। इससे परिवार के भरण-पोषण में बड़ी समस्या पैदा हो रही है।
बिक्री नहीं होने से कुम्हार परेशान
चिलचिलाती धूप और तेज गर्मियों के मौसम में मिट्टी से बने मटके और सुराही का पानी पीना सबसे ठीक माना जाता है। खासकर इस वक्त जब कोरोना वायरस से बचाव के लिए लोग फ्रिज का पानी पीने से परहेज कर रहे हैं। ऐसे में मटकों की डिमांड अधिक हो जानी चाहिए लेकिन कोरोना में लगे लॉकडाउन की वजह से बाजार सूने पड़े हंै, वहीं लोगों की आवाजाही भी कम नजर आती है। ऐसे में मटकों की बिक्री का इंतजार कर रहे कुम्हारों के धंधे पर कोरोना वायरस का ग्रहण लग गया है।