भ्रष्टाचार के मामले में आखिर क्यों फिसल गये हम भारतीय

 भ्रष्टाचार के मामले में आखिर क्यों फिसल गये हम भारतीय

रक्षित परमार, उदयपुर
मो. 97834 40685

भ्रष्टाचार न केवल भारत के लिए अपितु वैश्विक समुदाय के लिए भी एक अभिशाप की भांति है। इसका विस्तार जिन देशों में ज्यादा है वहां विकास की संभावनाओं और उम्मीदों को गहरा झटका लगा है। भारत गणराज्य एक लोकतांत्रिक देश है ऐसे में यहां अधिकतर सरकार्यता के निर्णयों के निर्धारण में जनता की भूमिका बढ़ चढ़ कर देखने को मिलनी चाहिए। स्थानीय स्वशासन की अवधारणा ने देश की जनता को शासन का हिस्सा बनाने में बहुत बड़ा योगदान भी दिया है। जनता के बढ़ते योगदान के बावजूद भ्रष्टाचार एक ऐसा कीड़ा है जिसने हम लोगों की सोच को संकीर्णता में लपेट रखा है। लोग बहुत चाहकर भी इस बुराई को छोड़ नहीं पा रहे हैं, इसका एक प्रमुख कारण यह भी रहा है कि न तो हम जनता और न ही हमारी सरकारें अब तक वह माहौल पैदा कर पायी हैं जिससे भ्रष्टाचार से मुक्ति का हमें बोध करा सकें।
हमारी परवरिशों, शिक्षा और सामाजिक माहौल ने हमारी नैतिक शिक्षा को केवल वैचारिकी तक सीमित करके रखा, उससे बाहर लाकर हम अपने आत्मबोध को व्यावहारिक रूप में नहीं ला सकें और इस बात का हमें तनिक भी अफसोस नहीं है। शायद यही सबसे बड़ी वजह है कि हम भ्रष्टाचार के मामले में आजादी के बाद भी कुछ खास सुधार नहीं कर पाये हैं। भ्रष्टाचार से निपटने के अल्पकालिक उपायों से लम्बे समय तक इस निजी नैतिकता से जुड़े प्रश्न का समाधान निकालना बहुत मुश्किल है। तकनीकी और मशीनरी के भरोसेमंद होने के बाद भी हम शत-प्रतिशत पारदर्शिता और जवाब देहिता क्यों साबित नहीं कर पा रहे हंै। इसका कारण है कि हम सुधरना ही नहीं चाहते हैं। हम दुनिया के उन देशों की फेहरिस्त में शामिल होना ही नहीं चाहते जहां आज डेनमार्क, न्यूजीलैंड, स्विट्जरलैंड , नार्वे और नीदरलैण्ड जा ठहरे हैं।
हम भ्रष्टाचार को लेकर शर्म महसूस नहीं करते अपितु गर्व महसूस करते हैं। हैरान कर देने वाली बात है कि ऐसे समर्पित लोग हमारे देश में बहुत कम हैं, निस्संदेह इनकी बदौलत देश की वैश्विक छवि थोड़ी बहुत अच्छी बन सकी है। हर दिन भ्रष्टाचार करने वाले, समूचे देश को शर्मसार करने वाले लोगों की संख्या अगर इतनी कम होती तो हम आज दुनियाभर के 180 देशों में से 80 वें पायदान पर नहीं होते।
वाकई हमें भ्रष्टाचार करने में कोई शर्म नहीं आ रही है। अगर वाकई आती तो हम वैश्विक भूखमरी सूचकांक में भी 117 देशों में से 102 वें पायदान पर नहीं होते। ये आंकड़े प्रतिष्ठित वैश्विक संस्था ‘विश्व आर्थिक मंचÓ ( World Economic Forum) की वार्षिक बैठक में ‘ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनलÓ (Transparency International) ने वर्ष 2019 के ‘भ्रष्टाचार अवधारणा सूचकांकÓ ( (Corruption Perception Index– 2019) के तहत जारी किये हैं। इस सूचकांक में 0 स्कोर वाला देश सर्वाधिक भ्रष्ट माना जाता है तथा 100 अंकों वाला देश सर्वाधिक इमानदार। भारत ने इस सूचकांक में कुल स्कोर 41 प्राप्त किया है, 2018 में भी ये ही स्कोर था मगर पायदान 78 था मलतब बिल्कुल साफ है कि करप्शन लेवल तो जस का तस ही बना रहा है।
यह आंकड़े तो केवल सार्वजनिक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार के आधार पर तय हुए हैं। पल भर के लिए सोचिए अगर निजी क्षेत्र भविष्य में कभी इसके दायरे में लाया जाए तो यह स्कोर और भी चिंताजनक स्थिति में पहुंच जायेगा। निजी क्षेत्र अब भी भ्रष्टाचार के मामले में एक तरह से डार्क जोन में है जिस पर अभी कोई विशेष ध्यान नहीं दिया जा रहा है और न ही फिलहाल किसी के पास कोई स्पिसिफिक स्ट्रेटेजी है इससे निपटने की। शायद इस क्षेत्र को हम नेशनल इंटेरेस्ट का नहीं मानते बल्कि यह एक बहुत जरूरी सेक्टर है जिसे हम केवल उपेक्षित रखना चाहते हैं।
बस यहीं से ये करप्शन हमारे रक्त का हिस्सा बन जाता है और हमारी रगों में ऑक्सीजन की तरह बहने लगता है। भारत जैसे देश में चंद ईमानदार लोगों की तारीफों के पुलिंदे बांधने वाले हम बहुत लोग हैं मगर उनकी जान बचाने की बात आ जाए तो हम यकायक बहुत पीछे हट जाते हैं। हमारे यहां अगर कोई इमानदार बनना भी चाहे तो उसकी सुरक्षा, उसका संरक्षण एक बहुत बड़ा विषय है जिन्हें हम जनता, हमारी सरकारें बिल्कुल नजर अंदाज कर देती हैंं। देश में अब भी सामाजिक माहौल कुछ ऐसा ही है कि ईमानदार व्यक्ति को कैसे भी करके प्रताडि़त किया जाता रहेगा, तरह – तरह की यातनाओं से उसके ईमानदारी से भरे होसले को समूल नष्ट किया जाता रहेगा ताकि कोई ओर ईमानदार पैदा न हो।
आज के समय में, एक ईमानदार और तटस्थ भारतीय का होना यकीनन बहुत मुश्किल काम है। मगर मैं देखता हूं बहुत सारे भ्रष्टाचारी आजकल प्रभावशाली राजनीतिक, सामाजिक या धार्मिक संगठन से जुड़ जाते हैं ताकि सरकार और प्रशासन उन पर कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर सकें। पुलिस और प्रशासन पर एक तरह से कोई बाहरी दवाब बना दिया जाता है ताकि कोई कड़ी कार्रवाई नहीं हो सके क्योंकि आपसे किसी को कोई फर्क ही नहीं पड़ा है। जब आपके होने से, आपके विचारों से, आपकी सक्रियता से किसी भी प्रभावशाली को जरा सा भी नुकसान हुआ तो समझ लीजिए आप संकट की ओर मुड़ रहे हैं, आपके लिए खतरे की घंटी बज चुकी है।
भ्रष्टाचार के मामले में न केवल हम भारतवासी बल्कि चीनी (80 वां स्थान), पाकिस्तानी (120 वें), श्रीलंकाई (93 वें), बांग्लादेशी (146वें ), नेपाली (113 वें) और म्यामांर के लोग (130वें स्थान) भी इसमें जरा भी पीछे नहीं है। मगर एक ऐसा देश जो ऐशियाई देशों को पलभर के लिए ही सही बेहद सुकून का अहसास अवश्य कराता है वह है, सुदूर पूर्वोत्तर में स्थित एक छोटा सा खूबसूरत देश भूटान। आज भी भूटान आर्थिक रूप से बहुत गरीब देश माना जाता है फिर भी वो ग्लोबल हैप्पीनेस इंडेक्स में, भ्रष्टाचार के मामले में (25 वें) और आर्थिक असमानता सूचकांक में एशियाई देशों में सबसे ऊपरी पायदान पर है। कोई न कोई तो वजह रही होगी भूटानियों के परवरिशों में कि वे स्वयं को बहुत तेजी से बदल रहे हैं आज।
भारत सरकार को प्रशासनिक ऑडिट के साथ -साथ अब सोशल ऑडिट के अस्तित्व को वैधानिक दर्जा देना होगा और इसे कानूनी रूप देकर प्रशासनिक और निजी क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार की हालिया स्थिति को सुधारने में काम में लेना चाहिए। भारत और राज्य सरकारों को प्रशासनिक सुधार आयोग की रिपोर्ट पर अमल करते हुए भ्रष्टाचार पर नकेल कसने की आज भी महती आवश्यकता है। साथ ही साथ सामाजिक जागरूकता के तौर पर इस मुद्दे को पाठ्यक्रमों का हिस्सा बनाकर नई पीढ़ी में चेतना जागृत करने के समन्वित और सतत प्रयास करने होंगे। हर व्यक्ति को अपने राष्ट्रीय कर्तव्यों का आभास हर हाल में होना चाहिए, देश के युवाओं को उन्मादी बनने की बजाय अपने राष्ट्र से सच्ची वतनपरस्ती निभाने की आज फिर से आवश्यकता है। जाति -धर्म -सम्प्रदायों से ऊपर उठ कर सोचना, देश की गंदी राजनीतिक उठापटकों को समझना और राष्ट्रहित सर्वोपरि रखना हमारा एकमात्र ध्येय होना चाहिए।

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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