डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
सरकार का दायित्व और दानवीरों की भूमिका
रामस्वरूप रावतसरे
जंगल में एक बरगद के पेड़ पर सैकड़ों की संख्या में लंगूर शांत बैठे थे। उसी समय एक चीता आया और बरगद की ठण्डी छाया में बैठ गया। शान्त बैठे लंगूरों ने जब चीते को बरगद की छाया में बेठा देखा तो आपस जोर जोर से चिल्लाने लगे ताकि सभी सचेत हो जाय। यहां तक तो ठीक भी था कि कोई भूलवश पेड़ से नीचे नहीं उतरे और चीते का ग्रास ना बन जाय लेकिन लंगूरों का मामला चिल्लाने तक ही सीमित नहीं रहा, वे बरगद की शाखाओं पर इधर से उधर उछलने कूदने लगे। इस उछल कूद में वे आपस में टकरा कर नीचे गिरने लगे।
बरगद की छाया में शान्त बैठा चीता भी लंगूरों को लेकर सचेत हो गया था। पेड़ पर जोर जोर से शोर मचाकर उछलते लंगूर नीचे गिरने लगे और सहज ही चीते का ग्रास बनने लगे। यही स्थिति लगभग हमारी लगती है। जब सरकार लॉकडाउन कर हमें घरों में रहने के लिये कह रही है तो कोई बड़ा कारण ही होगा लेकिन हम हैं कि, इस घड़ी का चिन्तन नहीं कर रहे हैं। तथाकथित रूप से हम अपने आप को लेकर तो चिन्ता मुक्त हैं कि हमें कुछ नहीं हो सकता। कुछ होना भी नहीं चाहिये लेकिन यह विचार हम तक ही सीमित नहीं है। वह हमसे निकल कर घर में, गली मौहल्ले में, गांव व शहर में दौड़ लगा रहा है। यह भी है कि हमें सरकार के दिशा निर्देशों की चिन्ता करते हुए लॉकडाउन की पालना सख्ती से करनी और करवानी चाहिये। ऐसा नहीं कर रहे हंै बल्कि उल्टा कहीं ज्ञानवीर बनकर तो कहीं दानवीर बनकर सड़कों पर हंै।
जब हमारी सुख सुविधा के लिये प्रशासन मुस्तैद है तो हम क्यों गाहे बगाहे इस महामारी को फैलाने और अपनों तथा प्रशासन की जिम्मेदारी को बढ़ाने में लगे हंै लेकिन हमारी प्रवृति लगभग बरगद पर बैठे लंगूरों की तरह है कि जो चीते का सहज ही ग्रास बन रहे हैं। उसी प्रकार कोरोना वायरस को बढ़ाने में कहीं ना कहीं हम भी भागीदार बन रहे हैं। इस बीमारी की गम्भीरता को देखते हुए सरकार अपना काम कर रही है। फिर हम क्यों ज्ञानवीर तथा दानवीरों की छद्म छवि को अपनाए सड़कों पर चहल कदमी कर रहे हंै। सोशल मीडिया पर सरकार किसी प्रकार की पाबंदी नहीं लगाती तो जनमानस को दिग्भ्रमित करने के लिये अब तक ज्ञानवीर कितना कुछ कर देते। खैर समय रहते सरकार ने उचित कदम उठाया। ऐसे ही सरकार को चाहिये कि जो दानवीर गरीबों को भोजन दे रहे हैं वह सरकारी कर्मचारियों की देख रेख में ही हो। इससे उन लोगों पर अंकुश लगेगा जो गरीबों को भोजन देने के नाम पर फोटों खिचवाते हैं। साथ ही भोजन उस तक पहुंचेगा जिसे वास्तव में भोजन की आवश्यकता है।
जिस प्रकार के समाचार एवं वीडियो सोशल मीडिया पर चल रहे हैं उसके अनुसार तो यह लगता है कि, भोजन का दुरूपयोग ही अधिक हो रहा है। लोग आवश्यकता नहीं होने पर भी ले रहे हैं और देने वालों का ध्यान सिर्फ और सिर्फ फोटो खिंचवाने या भोजन वितरण करते समय का वीडियो बनाने तक ही सीमित रह गया लगता है। सरकारी एजेन्सी के माध्यम से भोजन का वितरण होगा तो, कौन वितरण कर रहा है किस प्रकार का भोजन वितरण कर रहा है। किस वार्ड, बस्ती में जा रहा। यह भी कि इन दानवीरों का उद्देश्य भोजन वितरण का ही है या कि और कुछ, की सम्पूर्ण जानकारी भी रहेगी। बार बार लोगों के आने जाने पर भी पाबंदी लगेगी।
‘कोई भूखा नहीं सोएÓ भाव तो अच्छा है लेकिन दिये गये भोजन का दुरूपयोग हो यह कहां न्याय संगत है। हर शहर, वार्डों, मौहल्लों, गांव तथा कस्बों में रहने वाले सभी निवासियों को जानकारी रहती है कि उनके आस पास रहने वालों में किसके पास खाने को है और किसके पास नहीं है। किसे बना बनाया भोजन दिया जाना उचित रहेगा और किसकी क्षमता है वह बना सकता है। बिना किसी राजनीतिक भेदभाव के वहीं के किसी सज्जन व्यक्ति को साथ लेकर चलने से उचित पात्र के पास भोजन सामग्री पहुंचेगी और ‘यह भाव कि कोई भी भूखा नहीं सोये का उद्देश्यÓ भी सफल होगा। कोरोना वायरस को लेकर सरकार का स्पष्ट निर्देश है कि घरों में ही रहे। सोशल डिस्टेंस हर हाल में बनी रहनी चाहिये ताकि इस वायरस की चैन नहीं बनने पाये। क्या ऐसा खाद्य या अन्य किसी प्रकार की सामग्री वितरण करते और लेते समय दोनों तरफ से शायद ही ध्यान रखा जाता है। हमारा प्रयास होना चाहिये कि हम इस वायरस को तोडऩे में सहायक बनें ना कि इसकी कड़ी को जोडऩे में।