संकल्प लें पृथ्वी को बचाने का

तू धरती है, धैर्य तेरा मिजाज है, विस्तार तेरा वस्त्र है, हवाएं तेरी सांसें हैं, नदियों का बहाव तेरी रक्त की शिराएं हैं। सूर्य, चन्द्र दोनों तेरी आंखें हैं, वन तेरा सौन्दर्य है तो हरे-भरे मैदान तेरी वेदी की बिछावन। सब कुछ तुझसे और तुझमें ही तो है। हमारी आशाएं, हमारा जीवन, जीवन की धड़कन और इस धड़कन को सम्भाले रखने की जिम्मेदारी तेरी ही तो है क्योंकि तू मां है। हां मां! आज तेरा तुझको अर्पण करने का, तेरा सजदा करने का
‘पृथ्वी दिवसÓ है।
पृथ्वी दिवस क्यों यह सोचा? क्यों यह मनाना पड़ा? तू सदियों पुरानी है, तेरे आरम्भ की जानकारी आज भी मानव की गिनती के वर्षों में नहीं आ पाई है। फिर ये दिवस मनाने की जरूरत क्यों पड़ी?
क्योंकि मनुष्य की एक फितरत है कि, वो उस वस्तु की कद्र कभी नहीं करता जो उसे आसानी से मिल जाती है। वही हुआ है, हमने पृथ्वी की जागीर की हर वस्तु का हरण करना शुरू किया और उसे बेहिसाब तहस-नहस करना शुरू कर दिया। इतना कि, धरती की ऋतुएं, मौसम, बारिश, पैदावार, वन और वन्यजीव को बदल दिया जिसका परिणाम हम देख पा रहे हैं। मनुष्य बेहद स्वार्थी है, पृथ्वी दिल को गहराइयों तक खोद कर उसे खोखला कर दिया है। सब कुछ आज ही प्राप्त करने का लालच इतना कि हम भूल चुके हैं कि, आने वाले हमारे वंशज क्या करेंगे? पानी, खनिज, वन के अमूल्य वृक्ष, सब कुछ खो गया है। इतना संतुलन बिगाड़ा गया है कि हमारी पृथ्वी की हवाएं दूषित हो चुकी हैं, पानी दूषित हो चुका है, खाद्य सामग्री दूषित नकली जहरीली हो चुकी है। आए वर्ष नई-नई बीमारियों को झेलता मनुष्य हो सकता है पृथ्वी पर से वो भी एक दिन समाप्त हो जाए।
आज हम अभी स्वाइन फ्लू से उबर भी नहीं पाए थे कि, पहले सॉर्स और फिर कोरोना वायरस। ये सब हमें यह याद दिलाने के लिए हैं कि, पृथ्वी दिवस सिर्फ पन्नों पर लिखने कि लिए नहीं है, एक दिन की चर्चा का विषय नहीं और सोश्यल मीडिया का शगल भरा एक दिन भी नहीं है।
आज हमें ठहर कर गम्भीरता से सोचना है कि, पृथ्वी की प्रकृति को यूं ही छेड़ते रहे तो एक दिन विनाश अवश्यंभावी है। आज जिस दहशत में हम जी रहे हैं, ये हमारी ही गलतियों का नतीजा है। आधुनिकता के मद में हम कुछ भी खाने लगते हैं। चीन के नागरिकों का वो अजीब जीव खाने का नतीजा आज पूरा संसार झेल रहा है। लाखों की संख्या में लोग बीमार हैं, कोई पता नहीं कि वे ठीक होंगे भी या नहीं? हजारों लोग काल के गाल में चले गए। वे मासूम थे, किसी ने बुजुर्ग खोए, किसी ने जवान, किसी ने मां-पापा खोए, किसी ने बच्चे खोए, उनकी क्या गलती थी? नहीं, ये गुनाह किसी ऐसे देश का है जिसने प्रकृति से विपरीत जीवन शैली अपनाकर एक दानव बीमारी को जन्म दिया। आज पीढिय़ों पर समाप्त होने का खतरा आ खड़ा हुआ है, कोई दवाई नहीं है। किस आशा या विश्वास पर कल की सोचें। बस यही कहना बहुत होगा कि, हमें पृथ्वी की प्रकृति को अपने स्वार्थ के लिए बर्बाद नहीं करना है। पेड़, पहाड़, वन, पानी, जीव-जन्तुओं को सुरक्षित रखना है। सन्तुलन नहीं रहा तो इस तरह की आपदाओं के आगे हम विवश होंगे और अपनी दुनिया की खूबसूरती को समाप्त कर देंगे।
सोचें, पृथ्वी पर मानव नहीं होगा तो पृथ्वी कैसी लगेगी? पृथ्वी पर पेड़ नहीं होंगे तो आपको कैसा लगेगा? हर पानी की घूंट यदि जहरीली हो गई तो जीवन कैसा होगा? बन्दूकें बोलती रही, जाल बिछते रहे, शेर-चीते की खालें बिकने को उतरती रही तो दुनिया कैसी लगेगी? वन्य जीवों का शिकार होता रहा, मनुष्य का शिकार होता रहा, पृथ्वी का शिकार होता रहा, पानी का शिकार होता रहा, पहाड़ों का शिकार होता रहा तो यकीन जानिए जीवन और जीवन से जुड़ी हर चीज का शिकार हो चुका। तब दुनिया नहीं सूखी बंजर पृथ्वी सांय-सांय करेगी। न हम होंगे, न हमारे सपने होंगे, न हमारी भविष्य की संतति होगी, न भूगोल होगा और न इतिहास होगा। होगा एक कहर बरपाने वाला जहरीला सन्नाटा जो इस छोर से उस छोर तक जाएगा पर जिन्दगी को ढूंढऩे पर भी नहीं पाएगा।
आओ हम मिल कर संकल्प लें कि, इस पृथ्वी दिवस पर हम पृथ्वी को बचाने की पूरी ईमानदारी से कोशिश करेंगे। यह मेरा, तेरा या उसका दायित्व नहीं, हम सबका दायित्व है। वरना हमारी अन्दर की ताकत स्वच्छ, जल, हवा, जीवन शैली यदि नहीं रहे तो कभी न कभी कोई ऐसी दैवीय कहर बीमारी या कुछ और बन हमारे जीवन को नष्ट कर देगा। समय रहते हमें संकल्प लेना है क्योंकि,
बीते युग में कुछ ऐसा जीवन होता था
जंगल जब घने होते थे, सांसे बहुत सरल होती थी।
चश्में जब पहाड़ों से बहते थे, उस युग में पानी बहुत मीठा था
बारिशों में जब लाल वर्षा की गाएं आती थी,
तब बारिशें बहुत सघन और समान्तर होती थीं।
भैंस की पीठ पर बैठकर तुम जब
भरे तालाब को पार करते थे।
उन बरस खेतों में धान खूब उपजता था।
बेरी इस सर्दी में, बेरों से भरी झुकी है,
लगता है अबकी गरमी, आमों का मजमा है।
पीली रमिया ने देखो, सफेद बछड़ा दिया है,
रोना नहीं ‘डमरूÓ तेरा पूरे बरस कटोरा दूध से भरा है।
‘औरÓ आज जीवन सिर्फ एक बेस्वाद, डरा सहमा
एक दूसरे को शक से देखता तीन हाथ की दूरी पर हाथ जोड़े ‘खड़ा हैÓ
संकल्प लें जीवन को बचाने का और उसके लिए पृथ्वी को बचाना ही होगा। स्वार्थों लालच को दरकिनार कर। बस यहीं तक ….।
घर में रहें, सुरक्षित रहें।
‘शुभमÓ

अभिषेक लट्टा - प्रभारी संपादक मो 9351821776

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