डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
मां, तुझे सलाम …..।
एक मां ने एक युद्ध सघन संघर्ष के बाद आखिर जीत लिया। ताकत कहां से मिली? बेटी के उस टूटे-फूटे शरीर की कन्दराओं से फुसफुसाहट में कहे गए अन्तिम शब्द, ‘मां उन्होंने बहुत मारा, मां बहुत दर्द हो रहा हैÓ और खून की उल्टी और डॉक्टरों का मां की आंखें बंद कर उस दर्द भरे पूरे वजूद के शरीर के पास से हटा लेना। मां का असहनीय दर्द से रो उठना। मां ने कहा, फिर उससे शब्दों में कोई बात नहीं हो पाई। कभी-कभी ईशारों में वो पूछती थी, क्यों आपने कपड़े नहीं बदले हैं? आप ठीक हैं न ? पर वो मौत को हराना चाहते हुए भी हरा नहीं पाई। पर मां उस अपनी बेटी निर्भया के लिए सात साल तक युद्ध करती रही और चारों दरिन्दों के फांसी पर चढऩे के साथ उनकी बेटी के लिए किए गए युद्ध को जीत पाई।
निर्भया की मां ने कहा, मुझे उन शब्दों के दर्द ने ताकत दी है। उस दर्द को देख, सुन और समझ पाई और पिछले सात साल से हर पल उस दर्द से गुजरी। वे कहती हैं, बहुत बार हारने की स्थिति बनने पर भी इन्साफ की आवाज को ऊपर रखा।
मां, तुझे सलाम, तू नारी है। न जाने कितनी बार ऐसी बातें इन सात सालों में हुई होंगी और अपने मन को मसोस कर उन्हें अन्दर दफन किया होगा। मैं समझ सकती हूं पर तू मां थी ना, इसलिए लडऩा अपनी बेटी के लिए तुझे आसान लगा। वक्त कठिन होगा, परिस्थितियां कठिन होंगी, आशाएं धूमिल होंगी पर इंसाफ वो भी अपनी बेटी के लिए तू ही पा सकती थी और तू ने पाया। लाखों प्रणाम, लाखों सैल्यूट और लाखों शाबास। मैंने निर्भया की मां का इन्टरव्यू देखा, मैंने वकील का भी इन्टरव्यू भी देखा।
निर्भया की मां का इन्टरव्यू फांसी से पहले का था और वकील का इन्टरव्यू फांसी के बाद का। वकील जिन्होंने फांसी और न्याय के बीच बचकानी दलीलों के आधार पर तय समय से हर बार एन वक्त पर फांसी को करीब तीन महीनों तक टाला। उन दरिन्दों के लिए वे लड़े जिन्होंने दरिन्दगी की सारी हदें पार कर दी थीं। एक सवाल पूछने की बड़ी इच्छा हो रही है, इन वकील सा. से जो तहरीर के अनुसार हिन्दुस्तान के माने हुए वकील हैं। प्रश्न पूछने से पहले माफी मांगना चाहती हूं। प्रश्न है-वकील सा. आपकी बेटी के साथ ऐसा हुआ होता तो भी क्या आप उन दरिन्दों को इसी प्रकार की दलीलें देकर बचाते? सारे हिन्दुस्तान की बेटियों, मां और हर स्त्री का यह प्रश्न है। आप सुन रहे हैं? जवाब दीजिए। आपने कहा, आत्मा अजर अमर है, पाप-पुण्य शरीर ही भुगतता है, तो प्रश्न है कि, निर्भया ने क्या पाप किया था बकौल आपके कथन के अनुसार? जो उसे युवा अवस्था में मौत के घाट उतार दिया और आप उन दरिन्दों को इसलिए बचाना चाहते हैं कि, उनकी उमर कम है।
आपकी दलीलें यह थीं कि, चारों को फांसी एक साथ नहीं दी जानी चाहिए। पर क्या उन छ: लोगों ने एक नवयुवती जिसकी उम्र सिर्फ 23 साल थी, को दरिन्दगी की हदें पार कर मार डाला। जवाब देना होगा, समाज की उन हस्तियों को भी जो चाहती थी कि, उन दरिन्दों को फांसी नहीं दी जाए। जब तक हो सका सबने जतन किया। जवाब तो आपको हमें, हम स्त्री समाज को देना पड़ेगा कि, हर बार नारी, बेटी व बहू के खिलाफ ही साजिश क्यों की जाती है? पुरूष वर्ग सदा जीतता क्यों चला जाता है?
मेरी सभी पाठकों से अपील है, आप दोषियों के वकील एपी सिंह का दोषियों को फांसी दिए जाने के बाद का इंटरव्यू जरूर देखें और आप खुद फैसला करें कि, वे किस तरह की मानसिकता के प्राणी हैं? बस हम खुश हैं कि, न्याय हुआ और निर्भया के जीतने की अपनी जिजीविषा को उसकी मां ने पूरा किया। ऐसे ही पलों में एक दिव्य शक्ति के होने का आभास हमें होता है। देर से ही सही बस, निर्भया जीत गई। उसकी दर्दीली मुस्कान काश कुछ सकून भरी हो।
एक प्रार्थना है निर्भया ….
मां तुम्हारी बहुत लड़ी,
गिरी, पड़ी, हारी, फिर भी, फिर खड़ी हुई।
वो जीती रही तुम्हारे दर्द को,
वो मरती रही तुम्हारी मौत को।
तुम्हारी आंखों में तैरते हुए वो,
इन्साफ के जज्बे को, पढ़ चुकी थी वो,
‘औरÓ
सात वर्ष या चौरासी महीने या
दो हजार पांच सौ बीस दिन,
का युद्ध लड़ा और तुम्हें तुम्हारे दर्द को,
आराम की आगोश में उन्होंने छोड़ा।
‘निर्भयाÓ क्या तुम जानती हो?
वो तुम्हारी ठण्डी लाश को,
न्याय के दिन तक कन्धे पर उठाए थी
‘औरÓ
आज वो शायद भार रहित सो पाई हों?
तुम सकून के आगोश में सोने से पहले,
एक बार-सिर्फ एक बार नन्हीं बेटी बन,
उनके सपने में जरूर एक बार आना,
मां की छाती से लग, उनकी आंखों में झांक,
उस सूनी गोद में, जो स्वर्ग से भी ज्यादा,
सकून, भारहीन, ममतावान और शान्त है।
उसी गोद में,
सो जाना, बस इसलिए कि, एक धन्यवाद देना तुम्हारा बनता है,
ममता, मां, गरिमा, प्रेरणा, प्यार दुलार और,
अदम्य, बेपनाह, गहरे, अबूझे जज्बे को जो,
सिर्फ और सिर्फ एक मां ही कर पाएगी,
हर युग में, हर धर्म में और हर वर्ग में।
निर्भया आना जरूर, मां की जीत को सलाम करने,
मां के बेपनाह प्यार को, श्रृद्धा देने, नमन करने।
बस यहीं तक ……….।