बारात घर

 बारात घर

अरे सुरेंद्र बेटा, एक सौ आठ पर फोन कर, राधे की पत्नी प्रसव वेदना में तड़प रही है। तेरी मां भी घबरा रही है।
गाड़ी ठीक कर रहे बेटे से सरपंच साहब ने कहा।
तीन बार कर लिया पिताजी, उधर से यही उत्तर मिलता है कि दो घंटे से पहले कोई एम्बुलेंस ना मिल सकती। सब कोरोना में लग रही हैं। अपना एरिया रेड जोन में आ गया, धड़ाधड़ मरीज मिल रहे हैं, उन्हें बड़े शहर ले जाना पड़ता है। संदिग्ध मरीजों की रिपोर्ट भी दिन में दो बार भेजनी होती है, सरकारी गाड़ी तो ना मिल सकती।
सुरेंद्र गांव में सबसे ज्यादा पढ़ा लिखा युवक है जो बी. ए. कर चुका है और शहर से लौटा है। उसकी समझदारी और प्रगतिशील विचारों के कारण युवा पीढ़ी उसे भावी सरपंच के रूप में देखने लगी है।
सरपंच साहब बोले।
किसी की मांग कर ले जाते हैं, जाना तो जरूर है।
लॉक डाउन में तो घर से बाहर पांव भी ना धर सकते। पुलिस वाले मजबूरी ना देखते सीधे ल_ जमाते हैं, कोई सरपंच मिल जाये तो शायद ऊठक बैठक से ही काम चल जाये।
सुरेंद्र ने बाप को छेड़ा।
यह वक्त मजाक का ना है कमीने। यह बता बहु की डिलिवरी कैसे होगी?
सरपंच साहब को वास्तव में चिंता हो रही थी।
आपके बारात घर में ले जाकर बिठा देते हैं। एक करोड़ रूपये फूंक रखे हैं ना वहां।
बेटे ने मौका देखकर बाप के हाड़ पर मार दी।
बेटे के व्यंग्य बाण से तिलमिलाये सरपंच साहब ने ऊंचा स्वर पकड़ लिया।
कोई शौक से ना बनाया हमने बारात घर, तू क्या जाने, तू तो तब पैदा भी ना हुआ था। जब तेरी बड़ी भुआ रामवती का विवाह हुआ था। पूरे पांच सौ बाराती आये थे, उन दिनों बारात चार दिन रुका करती थी। सभी बाराती एक जगह रुकने की जिद पकड़ गए। कहां ठहराते। बात बिगड़ गयी। तू तू, मैं मैं से बढ़ कर मारपीट तक पहुंच गयी। बेचारी रामवती फेरों के बाद भी छह महीनों तक पीहर बैठी रही। बड़े बुजुर्गों ने जाकर पांव पकड़े तो छोरी की विदाई हो सकी। तब पूरे गांव ने निश्चय किया कि आलीशान बारात घर बनवाया जाये। पच्चीस कमरों का बारात घर आसपास के गांवों में कहीं ना है। यह गांव का स्वभिमान तो है ही, कितने काम आता है। चुनाव के दिनों में पोलिंग पार्टियां यहां ठहरती हैं। पटवारी जी आते हैं तो उनका दरबार यहीं लगता है। वृद्ध जन ताश खेल कर मन बहलाव करते हैं। औसर -मौसर यहीं होते हैं। ठाठ ना बन रही है, और तू कहता है करोड़ रुपया बर्बाद कर दिया?
सरपंच जी ने एक ही सांस में सारी गाथा कह सुनाई।
फिर भी चार कमरों की एक डिस्पेंसरी बनवा देते तो गांव में नर्स रहती, रात- बिरात इमरजेंसी में सहारा बनती। पचास वर्ष पहले का प्राईमरी स्कूल है, उसमें कमरे बनवा देते, उसे क्रमोन्नत करवा लेते तो हो सकता था गांव का कोई छोरा पढ़ लिख कर डॉक्टर ही बन जाता। चालीस साल से तो आप ही सरपंच हैं, बताओ क्या किया गांव के लिए?
सुरेंद्र ने भड़ास निकाल ली।
हिसाब बाद में लेना मैंने क्या क्या किया है, पहले तेरी भाभी के प्रसव का सोच।
सरपंच साहब को बेटे पर गर्व हुआ।
वो मैं संभाल लूंगा। शहर में मेरे दोस्त की मां डाक्टरनी थी, वो हमें डिलीवरी में लगने वाले टीकों के बारे में बताती रहती थीं। मैंने सब कुछ सीख लिया था। भाभी की हालत के बारे में मुझे पता था, सब दवाइयां साथ लाया हूं, इसकी चिंता मुझ पर छोड़ दें, आप तो यह मनन करें कि गांव में अस्पताल जरूरी है या बारात घर।
कहते हुए सुरेंद्र सिरिंज में दवाई भरने लगा। सरपंच साहब भी निश्चय कर चुके थे, बोले –
मैं कल ही सरकार के पास प्रस्ताव भेजता हूं कि बारात घर में अस्पताल खोल दिया जाए।
भीतर जाते सुरेन्द्र ने अदा के साथ सेल्यूट किया, सरपंच साहब मुस्कराते हुए हुक्का गुडग़ुड़ाने लगे।

रूप सिंह राजपुरी
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