डाक विभाग कॉलोनियों में जाकर खोल रहा है सुकन्या समृद्धि खाते
क्या पायलट भी उड़ान भरने का मन बना चुके हैं ?
रामस्वरूप रावतसरे
जयपुर। मध्य प्रदेश में सिंधिया के वायरस ने कमलनाथ सरकार को औंधे मुंह पटका है, क्या वैसा वायरस राजस्थान में भी अपना असर दिखा सकता है? इस बात को पुष्ट करने वाले राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार सचिन पायलट अपनी सरकार में ही अपने आपको उपेक्षित मानते हुए कई बार सरकार के कामकाज पर सवाल उठा चुके हैं। इनके समर्थक कई विधायक और मंत्री भी नाराज हैं उनका कहना है कि गहलोत सरकार में उनकी किसी प्रकार की सुनवाई नहीं होती है। ऐसी स्थिति के चलते सचिन पायलट भी उसी राह पर चल सकते हैं जिस राह पर ज्योतिरादित्य सिंधिया चल कर गये हैं।
जानकार लोगों के अनुसार राजस्थान में उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट समेत उनके खेमे से माने जाने वाले करीब एक दर्जन मंत्रियों की सरकार में स्थिति ठीक नहीं हैं। बीते दिनों परिवहन विभाग में एंटी करप्शन ब्यूरो की कार्रवाई को भी इसी से जोड़कर देखा जा रहा है। सूत्रों का दावा है कि सचिन पायलट खेमे से यातायात मंत्री प्रताप सिंह खाचरियावास, पर्यटन मंत्री विश्वेंद्र सिंह, खाद्य नागरिक आपूर्ति मंत्री रमेश मीणा, प्रमोद जैन भाया, उदयलाल आंजना तथा मास्टर भंवरलाल समेत करीब एक दर्जन मंत्री और कई वरिष्ठ कांग्रेसी नेता जिन्हें मंत्री नहीं बनाया गया वे भी अपनी ही सरकार से खासे नाराज बताये जा रहे हैं। समय आने पर इनकी नाराजगी भारी पड़ सकती है।
राजस्थान में कांग्रेस के पास कुल 101 विधायक हैं। जबकि हाल ही में बसपा के 6 विधायक भी कांग्रेस में शामिल हुए हैं। साथ ही करीब 10 विधायक ऐसे हैं, जिन्होंने निर्दलीय चुनाव लड़ा लेकिन सरकार बनने के बाद कांग्रेस के साथ आ गए हैं। कांग्रेस के मूल 101 विधायकों में से करीब 40 विधायक ऐसे हैं, जो उप मुख्यमंत्री सचिन पायलट द्वारा बांटे गए टिकटों पर जीत कर आए हैं। ऐसे ही 40 विधायक हैं, जो अशोक गहलोत के गुट से माने जाते हैं। बाकी 20 विधायक कांग्रेस पार्टी के मूल सदस्य माने जाते हैं।
इन सारी स्थितियों के मध्य नजर राजस्थान के युवा राजनीतिज्ञ और प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष सचिन पायलट भी कांग्रेस को अलविदा कहते हैं तो अशोक गहलोत सरकार भी कमलनाथ सरकार की तरह अल्पमत में आ जाएगी। ऐसी स्थिति नहीं आने पाये, इसके लिए अशोक गहलोत एवं आलाकमान सक्रिय हो गए हंै। कांग्रेस के कुछ पदाधिकारियों का मानना है कि राजस्थान में डैमेज कंट्रोल करने के लिए आलाकमान ने फैसला लिया है, जो राज्य सभा चुनावों के बाद अमल में लाया जाना बताया जा रहा है। कांग्रेस कार्यकर्ताओं का तो यहां तक कहना है कि अशोक गहलोत को कांग्रेस में राष्ट्रीय स्तर पर जिम्मेदारी सौंपी जाएगी। राजस्थान का पूरा प्रभार सचिन पायलट और रामेश्वर लाल डूडी के कंधों पर आने वाला है। जिससे राजस्थान में कांग्रेसी सरकार बची रह सके।
एक बात जो राजनीतिक गलियारों में चहलकदमी कर रही है कि क्या सांसद फारूक अब्दुल्ला की रिहाई में सचिन पायलट स्तर पर सौदेबाजी हुई है? 5 अगस्त 2019 को जब भारत सरकार ने जम्मू कश्मीर को 2 राज्यों में विभाजित करके वहां विवाद का कारण बनी धारा 370 और 35 ए को समाप्त किया था। भारत सरकार ने करीब 7 महीने बाद जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री एवं सांसद फारूक अब्दुल्ला को रिहा कर दिया है। फारूक अब्दुल्ला ने रिहा होने के बाद मीडिया से बात करते हुए कहा कि अगर मोदी सरकार उनको अनुमति देगी तो जल्दी ही वह संसद में पहुंचेंगें। फारूक अब्दुल्ला की रिहाई के बाद ट्वीट करके राजस्थान के उपमुख्यमंत्री, कांग्रेस के प्रदेशाध्यक्ष और फारूक अब्दुल्ला के दामाद सचिन पायलट ने खुशी जाहिर करते हुए कहा कि अभी जम्मू कश्मीर में सब कुछ सामान्य होने की संभावना है।
राजस्थान में कर्नाटक और एमपी जैसे सियासी हालात तो फिलहाल नहीं हैं क्योंकि मुख्यमंत्री अशोक गहलोत ने जहां बीएसपी विधायकों को अपने साथ लाने में कामयाबी हासिल की है, वहीं निर्दलीय विधायकों को भी वे सरकार के समर्थन में लाने में सफल रहे हैं लेकिन कांग्रेस के अंदर सियासी असंतुलन आने वाले समय में बड़ा सवाल बन सकता है।
राजनीतिक परिदृश्य में सामने आ रहे घटनाक्रम से यह बात पुष्ट होती लग रही है कि आने वाले समय में राजस्थान को लेकर भी कांग्रेस को विरोधियों से ज्यादा अपनों को सहेजने में शक्ति अधिक लगानी पड़ सकती है। जहां मुख्यमंत्री अशोक गहलोत अपनी वर्तमान स्थिति को बनाये रखने के लिये हर सम्भव प्रयास में बताये जाते हैं तो सचिन पायलट एवं उनका ग्रुप मत चूको चौहान की स्थिति में आ गया है। अब यह अलग बात है कि सचिन पायलट और उनके समर्थक कांग्रेस में रहकर अपनी बात मनवाते है या फिर नए मैदान की ओर कूच करते हंै।